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38 : श्रमण, वर्ष ६४, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर २०१३ उपर्युक्त कोश ग्रन्थों के अतिरिक्त कुछ छोटे ग्रन्थों की रचना १८वीं शताब्दी के पूर्व हो चुकी हैं जो निम्न हैनिघण्टु समय, अनेकार्थ नाममाला, अभिधान चिन्तामणि अवचूरि, शब्दचन्द्रिका, शब्दभेदनाममाला, अव्यय एकाक्षर नाममाला, शब्दसन्दोह संग्रह, शब्दरत्न प्रदीप, गीतार्थ कोश, पंचसंग्रह नाममाला, एकाक्षरी नानार्थकाण्ड आदि। इन सभी कोशों पर मनीषी विद्वानों ने टीका भी लिखी है जो निम्न है- धनञ्जय नाममाला भाष्य-अमरकीर्ति, अनेकार्थ नाममालाटीका, अभिधानचिन्तामणि, अवचूरि, अभिधान चिन्तामणि बीजक, अभिधान चिन्तामणि नाममाला प्रकावली, अनेकार्थ संग्रहटीका, निघण्टु शेष टीका आदि। तृतीय अध्यायः प्राकृत भाषा के जैन कोश एवं कोशकार१. पाइयलच्छीनाममाला- यह कोश उपलब्ध प्राकृत कोशों में प्रथम
है। इसके रचनाकार पं०धनपाल जैन हैं। इपका समय वि० सं० १०२९ है। इस कोश में २७६ गाथाएं हैं। इसमें २९८ शब्दों के पर्यायवाची शब्दों का संकलन है। देशी नाममाला - यह देशी शब्दों का कोश है। इसके प्रणेता आचार्य हेमचन्द्र हैं। इनका समय १२वीं शताब्दी माना जाता है। इनसें ७८३ गाथायें हैं। अभिधानराजेन्द्र कोश - इसके प्रणेता विजय राजेन्द्र सूरि है। इस कोश में प्राकृत जैन, आगम एवं व्याख्या साहित्य में उल्लिखित सिद्धान्त, इतिहास, शिल्प, वेदान्त, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा आदि विषयों का संग्रह किया गया है। इस कोश को तैयार करने के लिए ९७ ग्रंथों का उपयोग किया गया है। अनेक विषयों का संग्रह करने के लिए इसमें ६०,००० शब्दों का प्रयोग किया गया है। यह १०,००० पृष्ठों का विशाल