Book Title: Sramana 2013 10
Author(s): Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 52
________________ संस्कृत एवं अन्य भाषाओं के जैन कोशों का अध्ययन : 45 कोश - निर्माण की दृष्टि से देखा जाय तो यह कहना अनुचित न होगा कि प्राचीन आचार्य इस विषय में दक्ष थे। आरम्भिक कोश पद्य में लिखे गये क्योंकि उन्हें कण्ठस्थ करना सरल था। कुछ कोश पर्यायवाची शैली में लिखे गये, कुछ विषय के अनुसार वर्गीकृत हुये, धीरे-धीरे अकारादिक्रम में भी कोश लिखने की विधा चल पड़ी, क्योंकि अब समस्त पुस्तक को कण्ष्ठस्थ करने की प्रवृत्ति समाप्त हो गयी है। आधुनिक जैन कोश अकारादिक्रम में हैं। $ जैन कोशों का एक विशिष्ट महत्त्व यह है कि उनमें देशी शब्द भी अधिक मात्र में संग्रहीत हैं। आज व्यवहार में प्रचलित ऐसे बहुत शब्द हैं जो न तो तत्सम हैं और न ही तद्भव | अतएव उन्हें संस्कृत कोशों में नहीं खोजा जा सकता अपितु प्राकृत कोशों में उन्हें प्राप्त किया जा सकता है। जैन कोश महत्त्वपूर्ण पूरक रूप से हमारे ज्ञान की अभिवृद्धि करते हैं। ****

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