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संस्कृत एवं अन्य भाषाओं के जैन कोशों का अध्ययन : 37 हैं। यह
इस कोश के प्रणेता पद्मसुन्दर
सुन्दरप्रकाश शब्दार्णव रचना वि० सं० १६१९ की है। इसमें २६६८ श्लोक है। यह कोश शब्दों तथा उनके अर्थों की विशद विवेचना करता है।
नाम संग्रह इसके रचयिता भानुचन्द्रगणि हैं। इनका समय वि० १६४८ है । कोश के अन्य नाम हैं- अभिधान नाममाला तथा विविक्त नाम संग्रह |
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शारदीय नाममाला इस कोश के प्रणेता चन्द्रकीर्ति सूरि के शिष्य हर्षकीर्ति सूरि हैं। इनका समय सत्रहवीं शताब्दी है । इस कोश में कुल ३०० श्लोक हैं।
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शेषनाममाला – मुनि साधुकीर्ति जी ने इस कोश की रचना की है। इनका समय भी सत्रहवीं शती है।
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शब्दरत्नाकर मुनि सुन्दरगणि ने वि०सं० १६८० में इस कोश की रचना की थी। इसमें छः काण्ड है। अर्हत्, देव,
मनुष्य, तिर्यक्, नारक, सामान्य, काण्ड ।
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विश्वलोचन कोश मुनि धरसेन ने विश्वलोचन कोश की रचना की है। इसका दूसरा नाम मुक्तावलीकोश भी है। इनका समय चौदहवीं शताब्दी माना जाता है। इस अनेकार्थ कोश में २४५३ श्लोक हैं।
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अपवर्गनाममाला – इसके प्रणेता जिनभद्रसूरि हैं। इसका रचनाकाल १२वीं शताब्दी निश्चित होता है।
एकाक्षर नाम मालिका
अमर द्वारा किया गया है। इसमें कुल २१ श्लोक हैं।
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एकाक्षर कोश कुल ४१ श्लोक है।
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इसका प्रणयन १२वीं शताब्दी में
एकाक्षर कोश महाक्षपणक प्रणीत है। इसमें
एकाक्षर नाममाला - इसके प्रणेता मुनि सुधाकलश हैं। इसमें कुछ ५० श्लोक हैं। इनका समय सत्रहवीं शताब्दी है।