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तीर्थंकर शान्तिनाथ का जीवन चरित-साहित्य, कला एवं ... :7 कथांकन को तीन आयतों में विभक्त किया गया है। प्रथम आयत में एक ऊँचे आसन पर विराजमान महाराज मेघरथ को सैनिकों एवं संगीतज्ञों से आवृत्त दिखाया गया है। सम्मुख ही एक तुला का अंकन है, जिसके एक पलड़े पर कपोत और दूसरे पलड़े पर स्वयं मेघरथ की आकृति है। पूर्व की
ओर मेघरथ की कायोत्सर्ग में तपस्यारत आकृति आमूर्तित है, जो उनके कपोत एवं बाज की कथा का स्मरण होने के पश्चात् संसार से विरक्त हो तपस्या में उन्मुख होने के सन्दर्भ का पुरातात्त्विक प्रमाण है। आगे शान्तिनाथ के माता-पिता की वार्तालाप में संलग्न आकृतियां उकेरी हैं, जिनके समीप ही माता की शयन आकृति है जिसकी सम्मुख त्रि० श.पु० च० में वर्णित १४ शुभ स्वप्नों का अंकन हुआ है, जो तीर्थंकर के गर्भ में आने का सूचक है।२९ दूसरे आयत में माता के साथ शिशु (शान्तिनाथ) का अंकन और इसी के दक्षिण की ओर इन्द्र की गोद में शिशु का अंकन वस्तुतः जन्म-अभिषेक का दृश्यांकन है। तीसरे आयत में चक्रवर्ती पद के चिह्न यथा-नवनिधि (नवघट के माध्यम से), खड्ग, चक्र, छत्र इत्यादि अंकित है, जिसके समीप चक्रवर्ती रूप में शान्तिनाथ ऊँचे आसन पर विराजमान हैं। दाहिनी ओर शान्तिनाथ का समवसरण और उसके ऊपर शान्तिनाथ की बैठी आकृति का अंकन है, जिसके माध्यम से कैवल्य-प्राप्ति के बाद प्रथमोपदेश का दृश्यांकन हुआ है। इसी प्रकार का दृश्यांकन कुम्भारिया के ही महावीर मन्दिर (११वीं शती ई०) की पश्चिमी भ्रमिका के पांचवें वितान पर उत्र्कीण है। यहाँ