Book Title: Sramana 2013 01
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 6
________________ सम्पादकीय प्रस्तुत अंक के संदर्भ में : जैन धर्म के इतिहास के संदर्भ में जैनेतरों में बड़ा भ्रम है कि इसका उद्भव भगवान् महावीर के काल से हुआ है जबकि परम्परा से इसे अनादि माना जाता है। वर्तमान इतिहास की दृष्टि से भी जैनों के प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव तथा वातरशना केशी आदि मुनियों के उल्लेख हमें वेदों में प्राप्त होते हैं। जैन पुराणों (पद्म पुराण ३.२८८, हरिवंश पुराण, ९.२०४) में ऋषभदेव के जीवन के सम्बन्ध में जो सूचनाएँ प्राप्त होती हैं प्राय: वैसी ही सूचनाएँ हिन्दुओं के भागवत् पुराण के पंचम स्कन्ध के प्रथम छ: अध्यायों में प्राप्त होती है। वहाँ भी भगवान् ऋषभ को नाभि- मेरु (मरु) पुत्र तथा भरत के पिता के रूप में बतलाया है, वे नग्न (वीतरागी, गृहत्यागी, दिगम्बर) होकर प्राकृतिक वातावरण में रहते थे और तप:साधना के द्वारा कैवल्य प्राप्त किया था। समस्त जैन तीर्थङ्करों में सिर्फ ऋषभदेव के मस्तक पर केशों (बालों) के कारण उन्हें केशरी कहा जाता है। ऋग्वेद में प्राप्त अनेक उल्लेखों ४.५८.३, १०.१०२.६, ७.२१.५, १०.९९.३ से स्पष्ट है कि वैदिक काल में श्रमण-संस्कृति का अस्तित्व था जिसका परिवर्तित रूप महादेव 'शिव' में दिखलाई पड़ता है। इससे इतना तो सिद्ध है कि श्रमण जैन संस्कृति वैदिक काल में थी। मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा की खुदाई से प्राप्त अवशेषों से भी इसकी प्रचीनता सिद्ध है। विष्णु के अवतारों में भी ऋषभदेव का नाम आता है। इक्कीसवें तीर्थङ्कर नमिनाथ की अनासक्त वृत्ति के भी उल्लेख प्राप्त होते हैं। नमि मिथिला के राजा थे तथा राजा जनक के पूर्वज थे। बाईसवें तीर्थङ्कर नेमिनाथ का वासुदेव कृष्ण के साथ चचेरे भाई का संबन्ध था। तेईसवें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ का जन्म महावीर से २५० वर्ष पूर्व हुआ था। इस तरह जैन श्रमण परम्परा की ऐतिहासिकता और प्राचीनता स्वयं सिद्ध है। जैन वास्तुकला, मंदिर निर्माण कला, मूर्तिकला, चित्रकला आदि का भी गौरवपूर्ण इतिहास है। जैन गुफाओं और जैन शिलालेखों से भी इसके प्रमाण मिलते हैं। इसी बात को ध्यान में रखकर यह अंक जैन इतिहास, संस्कृति, कला एवं स्थापत्य को समर्पित है। इस अंक में चार लेख हिन्दी के और दो लेख अंग्रेजी के दे रहें हैं।

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