Book Title: Sramana 2007 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 7
________________ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३ / अप्रैल-सितम्बर २००७ जैन परम्परा का मूलमंत्र ' णमोकार मंत्र' है, जिसे अनादि-निधन कहा जाता है। इसमें अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन पांचों परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है, इसलिए इसे नमस्कार मंत्र या पंच नमस्कार मंत्र भी कहा जाता है। इस मंत्र का प्राचीनतम किन्तु अपूर्ण उल्लेख सम्राट खारवेल के हाथीगुम्फा लेख में उपलब्ध होता है। वहां केवल 'नमो अरिहंताणं' और 'नमो सवसिधानं' ये दो पद ही पाये जाते हैं। इसके पांचों पद 'षट्खण्डागम', 'प्रज्ञापना', 'भगवती' और 'कल्पसूत्र' आदि ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं। ओंकारमय (अरहन्त, अशरीरी, आचार्य, उपाध्याय और मुनि) णमोकार मंत्र मूलत: विशुद्ध आध्यात्मिक मंत्र है, इसके जाप से साधक को विशेष ऊर्जा प्राप्त होती है। वह ऊर्जा साधक के कर्ममल को जलाकर नष्ट कर देती है, जिससे उसकी आत्मा विशुद्ध हो जाती है और अन्ततः साधक मोक्षसिद्धि प्राप्त कर लेता है। इस मंत्र का उपयोग स्तम्भन, वशीकरण, उपसर्ग निवारण आदि कार्यों में भी होता रहा है। जैन साहित्य में इस मंत्र के अनेक चमत्कारिक उदाहरण देखे जा सकते हैं। जैन परम्परा में चौबीस तीर्थंकरों के शासनदेव स्वीकार किये गये हैं, जो यक्ष और यक्षी युगलरूप होते हैं। ये शासनदेव तीर्थंकरों के आराधकों के संकटों का निवारण करनेवाले तथा अनेक सिद्धियों के दाता माने जाते हैं। जैन परम्परा के मंत्र-तंत्र विषयक साहित्य में पहले तीर्थंकर ऋषभदेव की शासनदेवी चक्रेश्वरी, आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ की शासनदेवी ज्वालामालिनी, बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ की शासनदेवी अम्बिका अपरनाम कूष्माण्डिनी और तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की शासनदेवी पद्मावती की आराधना विशेष रूप से की गई है। यहां सरस्वती देवी का भी खूब प्रभाव दिखाई देता है। उक्त सभी के कल्प-ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं। स्तुति-मंत्रों के जाप और होम करने से सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। उन सिद्धियों का प्रयोग स्व-पर उपकार के लिए तंत्र और यंत्र के माध्यम से किया जाता है। मंत्र, तंत्र, यंत्र, सिद्धि-विधान एवं प्रयोग आदि का विस्तृत विवरण सम्बद्ध ग्रन्थों में उपलब्ध होता है । 'धवलाटीका ' (पु० १३, ५/५/ ८२/३४९) में मंत्र-तंत्र के सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ 'जोणिपाहुड' का उल्लेख हुआ है। क्षु० जिनेन्द्र वर्णी (जै० सि० को० १, पृ० ३४०) ने उसे धरसेन (ई०४३) द्वारा रचित बताया है, किन्तु दुर्भाग्य से उक्त ग्रन्थ अद्यावधि अनुपलब्ध है। यहां जैन परम्परा के मंत्र-तंत्र-यंत्र विषयक साहित्य का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है - १. अनुभवसिद्ध मंत्र द्वात्रिंशिका इसके कर्ता आचार्य भद्रगुप्त हैं। एच० आर० कापडिया ने इसका रचनाकाल विक्रम की सातवीं सदी माना है।' इस द्वात्रिंशिका का प्रकाशन 'भैरव - पद्मावती-कल्प'

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