Book Title: Sramana 2003 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 11
________________ जैनधर्म की ऐतिहासिक विकास-यात्रा . मनुष्य (निवर्तक) (प्रवर्तक) चेतना वासना विवेक भोग विराग (त्याग) अभ्युदय (प्रेय) निःश्रेयस् स्वर्ग मोक्ष (निर्वाण) कर्म संन्यास प्रवृत्ति निवृत्ति प्रर्वतक धर्म निवर्तक धर्म अलौकिक शक्तियों की उपासना आत्मोपलब्धि समर्पणमूलक यज्ञमूलक भक्तिमार्ग कर्ममार्ग चिन्तन प्रधान देहदण्डनमूलक ज्ञानमार्ग तपमार्ग जिवर्तक (श्रमण) एवं प्रवर्तक (वैदिक) धर्मों के दार्शनिक एवं सांस्कृतिक प्रदेय. प्रवर्तक और निवर्तक धर्मों का यह विकास भिन्न-भिन्न मनोवैज्ञानिक आधारों पर हुआ था, अत: यह स्वाभाविक था कि उनके दार्शनिक एवं सांस्कृतिक प्रदेय भिन्न-भिन्न हों। प्रवर्तक एवं निवर्तक धर्मों के इन प्रदेयों और उनके आधार पर उनमें रही हुई पारस्परिक भिन्नता को निम्न सारणी से स्पष्टतया समझा जा सकता है -

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