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[ ६६ ] प्रधान विषय
अध्याय
पृष्ठाङ्क
चोरने से जो जो बीमारी होती है उनका विस्तार, उनके शमनार्थ प्रायश्चित्त, व्रत, दान (१६-१६ )। ५ अगम्यागमन प्रायश्चित्तम ।
६१३ मातृ गमन से मूत्रकुष्ठ (लिंग नाश ) रोग उनके शमन का प्रायश्चित्त और दान का विधान (२६ )। लड़की के साथ व्यभिचार करने से रत्त कुष्ठ उसकी शान्ति (२७) । भगिनी के साथ व्यभिचार करने से पीतकुष्ठ (२८)। ऊपर के पापों का प्रायश्चित्त विधान और दान (२६-६५)। भ्रातृ भार्या गमन करने से गलित कुष्ठ होता है (६६) और वधू के पास गमन करने से कृष्ण कुष्ठ होता है (३७) (तथा चतुर्थ अध्याय में भी मातृगमन भगिनी गमन के रोग और शांति हैं ) उक्त रोगों का प्रायश्चित्त और दान वर्णन है। तपस्विनी के साथ गमन करने से अश्मरी रोग, (पथरी रोग)। राज और राजपुत्र को चोरी से मारना, मित्र में भेद करानेवाले का वर्णन, गुरु को मारने से रोग और प्रायश्चित्त। छोटेछोटे पापों का वर्णन और प्रायश्चित्त तथा व्रत शान्ति का वर्णन। पांचवें अध्याय में मातृगमन से लेकर भगिनी आदि अगम्या गमन से जो कुष्ठ रोग असाध्य रोग होते हैं उनकी शान्ति का विस्तार, देव प्रतिमा, पूजन, दान, हवन आदि प्रायश्चित्त बताया है।