Book Title: Sindur Prakar
Author(s):
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४) ने उदये सूर्योदयसमानः। पुनः कथंजूतोनखातिजरः मुक्तिस्त्रीकुचकुंजकुंकुमरसः मुक्तिरेव स्त्रीतस्याः कुचावेव कुंचौ तत्र कुंकुमरसः काश्मीररजोन वलेपतुल्यः मुक्तिस्त्रीवदनैककुंकुमरसइति वा पाठः । पुनः कथंजूतः नखद्युतिजरः श्रेयस्तरोः पखवप्रोखासः श्रेयः कल्याणमेव तरुर्वृदस्तस्य पकवानां नूतनपत्राणां प्रोल्लासः उगमः। ईदृशः पार्श्वप्रनोः क्रमयो. श्वरणयोर्नखातिनरोवो युष्मान् पातु रदतु नखातिनरस्य रक्तवर्णत्वात् रक्ता एवोपमा । जो जव्य प्राणिन् ! एवं ज्ञात्वा मनसि विवेकमानीय श्रीपावनाथस्य चरणकमलौ एव सेव्यौ सेव्यमानानां यत्पुण्यमुत्पद्यते तत्पुण्यप्रसादात उत्तरोत्तरं मांगलि क्यमाला विस्तरंतु ॥१॥
जाषाकाव्यः-शोनित तप गजराज, सीस सिंदूरपूर बवि ॥ बोधदिवस श्रारंज, करन कारन उ. द्योत रवि ॥ मंगल तरु पल्लव, कषाय कंतार हुताशन ॥ बहु गुनरतन निधान, मुक्ति कमला कमला सन ॥ इह विध अनेक उपमा सहित, अरुन वरन संताप हर ॥ जिनराय पाय नख ज्योति वर, नमत बनारसि जोरि कर ॥१॥

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