Book Title: Sindur Prakar
Author(s): 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 10
________________ (२) तेने विषे ( सिंदूरप्रकरः के) सिंदूरना पुंज समानडे, वली (कषाय के०)क्रोध, मान, माया, लोन, ते रूप (अटवी के० ) वन, तेने बालवा माटे (दावार्चिर्निचयः के० ) वनना अग्निनी ज्वालानासमूहनी तुल्य बे. वली (प्रबोध के ) ज्ञान ते रूप जे ( दिवस के ) दिवस तेनो (प्रारंज के ) उदय, तेने विषे ( सूर्योदयः के०) सूर्योदय सदृश , वली (मुक्तिस्त्री के) मुक्तिरूप जे स्त्री, तेना (कुचकुंन के )) स्तनकुंज, तेने विषे (कुंकुमरसः के ) कुंकुमरसना लेपन समान , तथा ( श्रेयस्तरोः के०) कल्याणरूप जे वृद तेना ( पद्धव के०) नवांकुर तेनो ने (प्रोडासः के०) उत्पत्ति जे थकी, एवो बे. श्रा श्लोकमां नखकांतिसमूहनी रक्तता , माटें सिंदूरप्रकरनी उपमा श्रापी जे. तथा वली था श्लोकमां को ठेकाणे (मुक्तिस्त्रीवदनैककुंकुमरसः) एवो पण पाठ . तेनो अर्थ एवी रीतें बे के मुक्तिरूप स्त्रीनुं शोजायमान जे मुख ते मुखकमल रंगवाने विषे कुंकुमरस लेपन सरखो नखकांतिसमूह बे, तेवो अर्थ जाणवो, माटे हे नव्यजनो ! ए प्रकारे जाणी मनमां विवेक लावीने श्रीपार्श्वनाथनां चरणकमलज

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