Book Title: Sindur Prakar
Author(s):
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
( ३ ) सेवन करवां, ते सेवनार सुजनने जे पुण्य उत्पन्न याय बे, ते पुण्यना प्रसादें करीने उत्तरोत्तर मांगलिक्यमाला विस्तार पामो ॥ १ ॥
॥ टीका ॥ श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा, स्तोतॄणां सुखका रकम् ॥ सद्यः संस्मृतिमात्रेण, प्रत्यूहव्यूहवारकम् ॥ १ ॥ श्री चंद्रकीर्त्तिसूरीणां सद्गुरूणां प्रसादतः ॥ सिंदूर प्रकरव्याख्या, क्रियते दर्षकी र्त्तिना ॥ २ ॥ युग्मं ॥ ग्रंथकर्ता आदौ इष्टदेवताचरणस्मणरूपं मंगलाचरण पूर्वकं श्रोतॄन् प्रति आशीर्वादवृत्तमाह ॥ व्याख ॥ ॥ पार्श्वप्रतोः श्रीपार्श्वनाथस्य क्रमयोश्चरणयोर्नखद्युतिजरः नखकांतिसमूहोवो युष्मान् पातु श्रवतु रक्षतु ॥ कथंभूतो नखद्युतिजरः तपःकरीशिरःकोडे सिंदूरप्रकरः तपएव करी हस्ती तस्य शिरःको के मस्तकमध्यजागः कुंजस्थलं तत्र सिंदूरप्रकर सिंदूरपुंजसदृशः नखद्युतिजरस्य रक्तत्वात् सिंदूरप्रकरोपमा पुनः कथंभूतः नखद्युतिजरः कषायाटवीदावाचिर्निचयः कषायाः क्रोध, मान, मायालो जास्तएव श्रटवी अरण्यं वनं तस्याः दावाचिंर्निचयः दावाग्निज्वाला समूहतुल्यः । पुनः कथंभूतोनखद्युतिजरः प्रबोध दिवसप्रारंभसूर्योदयः प्रबोधज्ञानं सएव दिवसो दिनं तस्य प्रारं

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 390