Book Title: Sindur Prakar
Author(s): 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 9
________________ अथ ॥श्रीसिंदूरप्रकरः प्रारभ्यते ॥ Me प्रथम ग्रंथना प्रारंजमां ग्रंथकर्ता पोताना जे इष्टदेव तेना चरणस्मरणरूप मंगलाचरण पूर्वक श्रा ग्रंथ सांजलनाराउने आशीर्वाद कहे जे. ॥ शार्दूलविक्रीडितवृत्तछयम् ॥ ॥ सिंदूरप्रकरस्तपःकरिशिरःकोडे कषायाटवी, दावाचिनिचयःप्रबोधदिवसप्रारंनसूर्योदयः॥ मुक्तिस्त्री कुचकुंन ( वदनैक) कुंकुमरसःश्रेयस्तरोः पल्लव,प्रोल्लासःक्रमयोर्नखद्युतिनरः पार्श्वप्रनोः पातु वः॥१॥ अर्थः-(पार्श्वप्रजोः के) श्रीपार्श्वनाथ प्रजुना (क्रमयोः के०) चरण जे तेमना ( नख के) नख, तेनी ( द्युती के०) कांति, तेनो (नरः के०) समूह ते ( वः के० ) तमोने (पातु के०) रक्षण करो. हवे ते नखकांतिसमूह केहवो ले ? तो के ( तपः के०) तपरूप (करी के० ) इस्ती, तेना ( शिरः के०) मस्तक, तेनो (क्रोडे के०) मध्यनाग जे कुंनस्थल

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