Book Title: Sindur Prakar Author(s): Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 7
________________ पांनु. लीटी. १२-१८ २५- ए ३७-१९ ५७ - १. १४- ५ ८२-१२ ८३-१० ८३—१६– GU—५-६- -- ए११- ६– ए३– ए३-२० १-१८ ए - १. १०४-१० ११८ १२- ५ १३- ४ --- १५०-१४ १६०-११ १६७-१४ शुद्धिपत्र. अशुद्ध. व्रतरुचौ पीठगे प्रसन्नपणे आषो ( उषलं के० ) पुष्योयें त जा पूजा बता बतो ( साम्राज्य के ० ) ( साम्राज्य के० ) श्रथात वध्यमुक्तेति यत्पुण्यमुत्पद्यते जानए धर्मध काथोऽप्रियोपि शुद्ध. व्रतरुचौ श्रापत वल 1 सत्पार्चिर्यद सागरपोताना प्रजातजवनं दीगे प्रतुन्नपणे आपो ( उपलं के० ) पुष्पोयें ति अर्थात वधमुक्तेति यत्पुष्यमुत्पद्यते जानए धर्माधम काथोsप्रियोsपि अपत वली सत्पाच्चिर्यदि सागरपोतना प्रजावजवनंPage Navigation
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