Book Title: Siddhantasara Dipak Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Chetanprakash Patni Publisher: Ladmal Jain View full book textPage 4
________________ सम्पादन सामग्री प्रतियों का परिचय सिद्धान्तसार दीपक के प्रस्तुत संस्करण का सम्पादन विशेष अनुसन्धान पूर्वक निम्नलिखित प्रतियों के आधार पर किया गया है (१) मूल प्रति यह प्रति प्रामेर शास्त्र भण्डार, जयपुर (राजस्थान) की है । इसमें १२"५५३" के २४३ पत्र हैं । प्रत्येक पत्र में | पंक्तियां हैं और प्रति पंक्ति में ३५ से ३८ अक्षर हैं ! लाल और कालो स्याही का उपयोग किया गया है । बीच बीच में कहीं पर टिप्पण दिए गए हैं । पुस्तक का लेखन-काल वि. सम्वत् १७८८ प्राषाढ़ कृष्ण चतुर्दशी शनिवार है । प्रति की लिपि सुवाच्य है । पुस्तक दीमक का शिकार हुई है। परन्तु प्रसन्नता की बात है कि दीमक का प्रकोप प्राजू-बाजू में ही हुमा है। लिपि सुरक्षित है। प्राकृत संस्करण का सम्पादन इसी प्रति के प्राधार पर किया गया है। (२) 'अ' प्रति का परिचय इसमें ११"x४३' के १९२ पत्र हैं। प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां हैं और प्रति पंक्ति में ३५ से ४० अक्षर हैं । काली स्याही का उपयोग किया गया है । प्रति का लेखन काल सम्बत् १५१६ थावरा सुदी पंचमी गुरुवार है ! अन्त में इसकी श्लोक संख्या ४५१६ दी हुई है । यह प्रति पड़ी मात्रामों से लिखी गई है। इसका पाठ उपलब्ध अन्य प्रतियों की तुलना में अधिक शुद्ध है । परम पूज्य अजितसागर महाराजजी से प्राप्त होने के कारण इसका सांकेतिक नाम "प्र' है। (३) 'स' प्रति का परिचय यह प्रति श्री दिगम्बर जैन सरस्वती भण्डार, बड़ा मन्दिर कैराना जिला मुजफ्फरनगर (यूपी०) से स्व० श्री रतनचन्दजी मु० के द्वारा प्राप्त हुई है। इसमें १०" x ४३" के २७५ पत्र हैं। प्रत्येक पत्र में ६ से ११ पंक्तियां हैं और प्रति पंक्ति में २८ से ३२ अक्षर हैं । लाल और काली स्याही का उपयोग किया गया है । बीच-बीच में कहीं पर हिन्दी भाषा में टिप्पण दिए गए हैं । प्रति का लेखन काल सम्बत् १८०४ चैत्र कृष्णा प्रतिपदा है। ___स्व० श्री रतनचन्दजी मु० ने यह प्रति सहारनपुर से भेजी थी, अतः इसका सांकेतिक नामPage Navigation
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