Book Title: Siddhantasara Dipak Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Chetanprakash Patni Publisher: Ladmal Jain View full book textPage 3
________________ [ ४ ] अलग हो गई है और कहीं-कहीं अनावश्यक रूप से संयुक्त भी हो गई है। कुछ भूलें भी रह गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि वे स्वाध्याय से पूर्व शुद्धिपत्र के अनुसार आवश्यक संशोधन अवश्य कर लें । गणितीय ग्रन्थों का मुद्रण वस्तुतः जटिल कार्य है । अनेक तालिकायें, अनेक प्राकृतियां, अनेक चित्र, जोड़-बाको-गुणा-भाग, बटा-बटी प्रादि की विशिष्ट संख्या मादि सभी इस ग्रन्थ में हैं। विद्युत व्यवस्था की रुग्णता के बावजूद जिस धैर्य के साथ श्री पांचूलालजी ने इस ग्रन्थ का मुद्रण पूरा किया है, उसके लिए वे और उनके सुपुत्र श्री सुभाषजी अतिशय धन्यवाद के पात्र हैं। दातार महानुभावों ने आर्थिक सहयोग प्रदान कर इसके प्रकाशन में रुचि दिखाई है; ज्ञान के प्रचार-प्रसार में उनकी यह अभिरुचि उन्हें ज्ञान-लक्ष्मो से सम्पन्न करे; यही कामना है । वस्तुतः अपने वर्तमान रूप में जो कुछ उपलब्धि है, वह सब इन्हा पुण्यात्माओं की है । मैं आप सबका अत्यन्त आभारी हूँ । सुधी गुणग्राही विद्वानों से अपनी भूलों के लिए क्षमा चाहता हूँ। पूज्य माताजी का रत्नत्रय कुशल रहे और स्वास्थ्य भी अनुकूल बने ताकि वे जिनवाणी को अधिकाधिक सेवा कर सकें-यही कामना करता है। श्री पार्श्वनाथ जैन मन्दिर, शास्त्री नगर, जोधपुर विनोप्त : घेतन प्रकाश पाटनी allPage Navigation
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