Book Title: Siddhantasara Dipak Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Chetanprakash Patni Publisher: Ladmal Jain View full book textPage 2
________________ निवेदन भट्टारक सकलकीर्ति विरचित जैन भूगोल के ग्रन्थ सिद्धान्तसार दीपक' पर नाम 'त्रिलोकसार दीपक' का प्रस्तुत संस्करण पाठकों के हाथों में पहुँचाते हुए अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है | सतत स्वाध्याय शीला तथा श्रध्ययन-अध्यापन में ही अपने समय का सदुपयोग करने वाली पूज्य १०५ श्रर्यिका श्री विशुद्धमतिजी ने इसकी हिन्दी टीका की है। 'त्रिलोकसार' के प्रकाशन के कुछ समय बाद से ही पूज्य माताजी इस ग्रन्थ की टोका करने में प्रवृत्त हो गई थीं। कर्म विपाक से इन वर्षों में आपका स्वास्थ्य अनुकूल नहीं रहा है फिर भी आप अपने कर्तव्यों में सदैव संलग्न रद्दी हैं; इसी हढ़ता का परिणाम है कि आपने साढ़े चार हजार श्लोकों से भी अधिक संख्या वाले इस बृहत्काय ग्रन्थ की हिन्दी टीका तीन वर्ष में ही पूरी कर ली । यों यह ग्रन्थ भी शीघ्र ही प्रकाशित हो जाना चाहिए था परन्तु संशोधन परिमार्जन - प्रकाशन व्यवस्था सम्बन्धी कतिपय अपरिहार्य कारणों से इसमें विलम्ब होता ही गया, जिसका हमें बहुत खेद है । विभिन्न हस्तलिखित प्रतियों से मूल पाठ का मिलान करने के बाद विषय की जटिलता को सरल बनाने का काम स्वर्गीय पण्डित ब्रह्मचारी श्रीयुत् रतनचन्दजी सा० मुख्तार सहारनपुर वालों द्वारा सम्पन्न हुन था । खेद है कि आज इस ग्रन्थ के प्रकाशन अवसर पर जंन जगत् की वह श्रद्वितीय विभूति हमारे बीच नहीं रही, इसे प्रकाशित देखकर उन्हें परम सतोष की अनुभूति हुई होती । हम स्वर्गीय पण्डितजी के अत्यधिक ऋणी हैं। संस्कृत भाषाजन्य अस्पष्टताओं का स्पष्टीकरा व त्रुटियों का निराकरण समाज के वयोवृद्ध विद्वान श्रद्धेय पण्डितजी डा० पन्नालालजी सा० साहित्याचार्य, सागर ने किया है; साथ ही अपनी व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालकर विस्तृत प्रस्तावना लिख कर हम पर जो अनुग्रह किया है, उसके लिए हम उनके चिर कृतज्ञ हैं । पूज्य पण्डितजी की निष्ठा, विद्वत्ता और सरलता के सम्बन्ध में क्या लिखू", प्रभिभूत है, उनका जीवन सबके लिए अनुकरणीय है । श्रीयुत् कजोड़ीमलजी कामदार, जोबनेर वालों ने टीकाकर्त्री पूज्य माताजी का संक्षिप्त परिचय लिखकर भेजा है। हम आपके आभारी हैं। आप कुछ वर्षों से पूज्य माताजी के पास ही रह कर अध्ययन करते हैं । व्रती हैं। आपकी भावना अधिकाधिक उज्ज्वल बनेगी, ऐसी प्राशा है। इस ग्रन्थ के प्रबन्ध सम्पादन में आपका सराहनीय सहयोग प्राप्त हुआ है । ग्रन्थ का मुद्रण-कार्य कमल प्रिण्टर्स, मदनगंज किशनगढ़ में सम्पन्न हुआ है । दूरस्थ होने के कारण प्रूफ भी मैं नहीं देख पाया है, संस्कृत में समस्त पदावली को शिरोरेखा कहीं-कहीं अलगPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 662