________________
४२. श्री मिरज तीर्थ
मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी
१९६० से मूल घर मंदिर था। उसमें से नवनिर्माण करके मं. २०४२ चैत्र वदी १ ता. २४-४-८६ पृ. आ. श्री विजय मित्रानंद सूरीश्वरजी म. के द्वारा प्रतिष्ठा हुई है। पिन-४१६ ४१० (जि.सांगली) सुमतिनाथ मार्ग पर जिनमंदिर का कार्य चालू है । पोष वदी १ ता. २१-१-१९८१ को खननविधि
श्रीवालपत्याखामा
मलनायक श्री वान्पपज्य स्वामी
४३. श्री कुंभोजगिरि तीर्थ
मूलनायक श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथजी
कंभोज गांव के पास में छोटे पहाड़ पर यह मंदिर है और दक्षिण भारत के शत्रुजय के रूप में प्रसिद्ध है।
ई. सं. १८४९ में जिनालय बनवाने की व्यवस्था के लिए वि. सं. १९०५ (सन् १८४९) नीचे जमीन लेकर कार्य शुरु किया। सं. ११०८ (सन १९५१) शिरढोण (ता. विजापुर गुजरात) को श्री फतहचंद मलुकचंद शाह के पहाड पर तीन मंजिल का सात शिखरों वाला देव विमान जैसा मंदिर बनवाने की शुरुआत की जो ई. म. १८६९ में पूर्ण हुआ।
सन् १८५३ में जयपुर से शिल्पी अरजण गंगाराम के पास र मूलनायक श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथजी आदि ९ प्रतिमाजी (सं. १९०१ पोष वदी १० को) खरीदी और वह प्रतिमा सन १८६१ सं. ११२६ कार्तिक सुदी १ से ७ तक पास के मील दर नेम नाम के गांव में अंजनशलाका करवाई और सन् १८७८ वि. सं. १९२६ महासुद को धूमधाम से जगवल्लभ पार्श्वनाथजी आदि जिन बिंबो की प्रतिष्टा यूमधाम से हुई सरकारी अनुशासन पूर्वक यह कार्य
सन् १८७२ सं. १९२८ मगशिर वदी १३ को श्री फतेहचंदभाई के आग्रह से पू. श्री हीररत्न सू. म. ने इस बारे में पत्र व्यवहार वगैरह देखकर आज्ञा पत्र दिया।
ई.स. १८४९ से १८७२ तक इस तीर्थ निर्माण सम्बन्धी व्यवस्था सेठ श्री फतेहचंदभाई तथा उनके भानेज श्री धरमचंद रायचंद करते थे उन्होंने १८७२ संवत १९२८ अषाढी पूनम को मुख्त्यारनामा लिखकर यह विभाग समस्त जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक जैन श्री संघ के प्रतिनिधि श्री रायचंद फतेचंद नाणावटी और फतेहचंद वेणीचंद मेहता (कुंभोज) नामके दो महानुभावों को यह तीर्थ सभी संपत्ति और जिस्माब-किताब और दस्तावेज और तीर्थ की व्यवस्था सौंप दोसन् १८७२ से १९१२ तक दोनों ने सुंदर व्यवस्था संभाली और सहयोग मिलने पर आगे रंगमंडप, गर्भगह आदि में आरस चोक में फशी तीन विभाग में धर्मशाला पानी का कंड, रोड, पहाड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ियां बाग आदि करवाये इतना ही नहीं पहाड़ पर रहे दिगम्बरीय मानस्तंभ, पानी के कंड, धर्मशाला आदि में मार्गदर्शन और आर्थिक सहायता भी की।
රගමු මුමුණි