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अजाहरा तीर्थ (ऊना) से नीचे के गांवों का अंतर किलोमीटर में)
(१) पालीताणा १६५ (२) जुनागढ़ १६० (३) प्रभासपाटण ८२ (४) ऊना ५ (५) दीव ११ (६) भावनगर १९०
वडदरा (गुजरात) से नीचे के गांवों का मार्ग किलोमीटर में अंतर
बडोदरा से डाकोर ५५ डाकोर से शामलाजी (व्हायाकपडवंज मोडासा) ११०, शामलाजी से केशरियाजी ६५, केशरियाजी से उदयपुर ६०, उदयपुर से हल्दीघाट ४२, हल्दीघाट से नाथद्वारा ( श्रीनाथजी ) २२, नाथद्वारा से चारभुजा ४२, चारभुजा से राणकपुर ५५, राणकपुर से माऊन्ट आबू (व्हायासिरोही) १६०, माउन्ट आबू से अंबाजी ३५, अंबाजी से मेहसाणा १२०, मेहसाणा से (व्हाया - मोढेरा) से बहुचराजी १६, बहुचराजी से अहमदाबाद ७०, अहमदाबाद से वडोदरा ११०
गुजरात के तीर्थों की अल्प जानकारी
भीलडीयाजी तीर्थ ( बनासकांठा ) इस तीर्थ के आसपास राघनपुर, डीसा, पालनपुर शहर आये हैं। भीलडी जंक्शन स्टेशन है। यहां से कच्छ में गांधीधाम औप राजस्थान में जाने के लिए ट्रेन मिलती है। यहां गांव में भी नेमिनाथ भगवान का मन्दिर है। और गांव के बाहर श्री पार्श्वनाथ भगवान का भव्य जिनालय, धर्मशाला, भोजनशाला और तीर्थ की पेढ़ी आती है। प्राचीन तीर्थ है। शंखेश्वर से राधनपुर होकर यहां आया जाता है। पक्का रोड़ है यहां से राधनपुर ६५ कि.मी. पलनपुर ४२ कि.मी. और डीसा १८ कि.मी. लगभग होता है।
शंखेश्वर तीर्थ यह तीर्थ बहुत प्राचीन और प्रसिद्ध है। वर्ष भर में लाखों यात्रीगण आते हैं, अषाढी श्रावक द्वारा बनवाई प्राचीन काल के श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान के चमत्कारी और रमणीय प्रतिमाजी है। इस तीर्थ का अनेक बार जीर्णोद्धार होता है। प्रथम जीर्णोद्धार ११५५ में सज्जनशाह मंत्री ने करवाया। गांव में पुराने मंदिर के अवशेष हैं। प्राचीन इतिहास बहुत लम्बा बताने जैसा है परन्तु यहां अल्प जानकारी ली है। यहां से गुजरात, कच्छ, सौराष्ट्र और राजस्थान आदि चारों तरफ जाने के लिए एस. टी. बस मिलती है। अहमदाबाद, वीरमगांव, सुरेन्द्रनगर, पालीताणा, महुडी, मेहसाणा, राधनपुर आदि अनेक गांवों से सीधी एस. टी. यस यहां आती है। धर्मशाला, भोजनशाला की सुन्दर व्यवस्था है। चारों दिशाओं में से आने के लिए पक्का रोड़ है।
उपरीयालाजी तीर्थ श्री ऋषभदेव भगवान का यह तीर्थ है। वीरमगांव और शंखेश्वर के बीच में है सं. १९१९ के लगभग आदिनाथ भगवान और दूसरी चार प्रतिमाजी जमीन में से निकले
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श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग २
थे। धर्मशाला-भोजनशाला की व्यवस्था है। कांच का कार्य देखने जैसा है। अहमदाबाद, वीरमगाम, शंखेश्वर से एस. टी. बस मिलती है। रेल्वे स्टेशन भी है।
महुडी - (गुजरात) पू. आ. श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. श्री की प्रेरणा से यह तीर्थ ज्यादा प्रसिद्धि में आया है। श्री पद्मप्रभस्वामी का गगनचुंबी भव्य बावन जिनालय है। धर्मशाला-भोजनशाला आदि की अच्छी व्यवस्था है। वर्ष भर में लाखों यात्रीगण आते हैं। श्री घंटाकर्ण महावीर, श्री बुद्धिसागरसूरिजी की प्रतिमा है। अहमदाबाद, मेहसाणा, शंखेश्वर, कलोल, वीरमगाम से एस. टी. बस मिलती है।
भोयणी श्री मल्लिनाथ भगवान का तीर्थ है। सं. १९३० महा सुद १३ को केवल पटेल के खेत में कुआं खोदते समय प्रगट हुए थे। कुकावाव और भोयणी ले जाने में वादविवाद होने पर बिना बैल की गाड़ी में विराजमान करने पर गाड़ी भोयणी तरफ मुडी और श्री संघ द्वारा नवीन जिनालय बनाकर सं. १९३४ महा सुद १० को प्रतिष्ठा कराई प्रतिमानी अलौकिक और प्राचीन है। धर्मशाला और भोजनशाला आदि की सुविधा है। रेल्वे स्टेशन है । अहमदाबाद कलोल से एस. टी. बस भी मिलती है।
तेज - भोयणी से कटोसण होकर बहुचराजी जाती हुई ट्रेन में रांतेज स्टेशन आता है। श्री नेमिनाथ भगवान का बावन जिनालय मंदिर है। पहले रत्नावती नगरी थी, ७०० जैनों के घर थे पाटन तक का यहां से भोंयरा है। अभी जो प्रतिमाजी है उसकी प्रतिष्ठा पू. पं. श्री रूपविजयजी महाराज ने सं. १९०५ में करवाई है। श्री हेमाभाई सेट ने यहां धर्मशाला बनवाई है। संप्रति महाराज के समय के प्रतिमाजी है। स्टेशन से गांव थोडी दूर है।
पानसर - श्री महावीर स्वामी भगवान का यह तीर्थ है। सं. १९६६ के वर्ष में रावल जला तेजा के घर की दीवाल में से यह प्रतिमाजी प्रगट हुए हैं। प्रतिष्ठा सं. १९७४ वै. सुद ६ को हुई है। देवविमान जैसा भव्य जिनालय है। गांव में भी मन्दिर है । धर्मशाला, भोजनशाला की व्यवस्था, अहमदाबाद से मेहसाणा जाती रेल्वे में कलोल के बाद पानसर स्टेशन आता है । अहमदाबाद- मेहसाणा आदि गांवों से एस. टी. बस भी मिलती है। शेरीसा (गुजरात) श्री पार्श्वनाथ भगवान का यह तीर्थ है। सं. १९५५ में जमीन खोदने पर प्रतिमाजी प्रगट हुए हैं सं. २००२ वै. सुद १० को शासन सम्राट के वरद हस्त से प्रतिष्ठा हुई थी। पं. लावण्य समय के वर्णन अनुसार सं. १५६२ में जिनमंदिर था श्री वस्तुपाल तेजपाल द्वारा वहां जिनसिंग बनवाने का उल्लेख मिलता है। धर्मशाला और भोजनशाला है। कलोल से पास में है। अहमदाबाद और कलोल से एस. टी. बस मिलती है। वामज कलोल से १६ कि.मी. और शेरीसा तीर्थ से ६ कि.मी. के अंतर में यह तीर्थ आया है। मूलनायक श्री आदिश्वर भगवान की प्रतिमा प्रभावशाली और प्राचीन है।