Book Title: Shravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Author(s): Rajkrishna Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 43
________________ ऐतिहासिक इतिवृत ११ घर मे रहने का उपदेश देते। भगवान ने उन पुत्रो से कहा कि इस विनाशी राज्य से क्या हो सकता है ? ये सव पदार्थ तृष्णा रूपी अग्नि को प्रज्वलित करनेवाले है। एक दिन भरत भी इस विनश्वर राज्य को छोडेगा, इसलिए इस अस्थिर राज्य के लिए तुम क्यो लडते हो? इस तरह भगवान के वचन सुनकर उन राजकुमारो को वैराग्य हो गया और उन्होने भगवान से परम दैगम्बरी दीक्षा धारण कर ली। अपने सहोदर भाइयो के दीक्षा-समाचार को सुनकर महाराज भरत को अव केवल यह चिन्ता रही कि बाहुबली को कैसे अपने अनुकूल किया जावे ? वाहुबली नीति में चतुर, भारी पराक्रमी और बुद्धिमान राजकुमार है, अत इसको साम, दाम, दण्ड और भेद से जीतना अशक्य है। यह विचारकर और मत्रियो से परामर्श लेकर पोदनपुर को एक अत्यन्त चतुर दूत भेजा । दूत ने नतमस्तक होकर बाहुबली को प्रणाम किया और बाहुबली ने भी उसको योग्य आसन देकर चक्रवर्ती की कुशल क्षेम पूछी। चतुर दूत ने कहा कि इक्ष्वाकुवशशिरोमणि आपके बडे भाई ने यह सदेशा भेजा है कि यह हमारा राज्य हमारे प्रिय भाई बाहुबली के बिना हमे शोभा नही देता और कहा कि आपको भी भरत का सत्कार करना चाहिए और प्रणाम करना चाहिए। बाहुवली इन मर्मछेदन करनेवाले वचनो को न सह सका । उसने कहा कि बड़े भाई नमस्कार करने योग्य है यह बात अन्य समय में वही जा सकती है, लेकिन जिसने मस्तक पर तलवार रख छोडी है उसको प्रणाम करना यह कहा की रीति है। आदिब्रह्मा

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