Book Title: Shravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Author(s): Rajkrishna Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 128
________________ ६२ - कला, मटीक, सानुवाद और जुगलकिशोरमुम्तारकी महत्वकी प्रस्तावना से अलकृत, सुन्दर जिल्द-सहित । १॥) . (६) अध्यात्मकमलमार्तण्ड-पचाध्यायीकार कवि राजमल्लकी सुन्दर आध्यात्मिक रचना, हिन्दी अनुवाद सहित और मुस्तार जुगलकिशोर की खोजपूर्ण ७८ पृष्ठ की विस्तृत प्रस्तावना से भूषित । १॥) (७) युक्त्यनुशासन-तत्वज्ञान से परिपूर्ण समन्तभद्र की असाधारण कृति, जिसका अभी तक हिन्दी अनुवाद नही हुआ था। मुख्तार जुगलकिशोर के विशिष्ट हिन्दी अनुवाद और प्रस्तावनादिसे अलकृत, सजिल्द ११) (८)श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र--आचार्य विद्यानन्दिरचित, महत्व की स्तुति, ___न्या प दरवारीलाल के हिन्दी अनुवादादि-सहित। ॥) (६)शासनचतुस्थिशिका-(तीर्थ-परिचय)-मुनि मदनकीर्ति की १३वी शताब्दी की सुन्दर रचना,न्या प दरवारीलाल के हिन्दी अनुवादादिसहित .... ) (१०)सत्साधु-स्मरण-मगलपाठ-श्रीवीर वर्द्धमान और उनके बाद के २१ महान् आचार्यों के १३७ पुण्य स्मरणो का महत्वपूर्ण सग्रह, सयो जक मुख्तार जुगलकिशोर के हिन्दी अनुवादादि-सहित ) (११) विवाह-समुद्देश्य-मुख्तार जुगलकिशोर का लिखा हुआ विवाह का सप्रमाण मार्मिक और तात्त्विक विवेचन (१२)अनेकान्त-रस-लहरी-अनेकान्त जैसे गूढ गभीर विषय को अतीव सरलता से समझने-समझाने की कुञ्जी, मुख्तार जुगलकिशोरलिखित। .... ।) (१३) अनित्यभावना-श्रीपद्मनन्दि आचार्य की महत्त्व की रचना, मुख्तार जुगलकिशोर के हिन्दी पद्यानुवाद और भावार्थ-सहित। ।) (१४)तत्वार्थसूत्र (प्रभाचन्द्रीय)-मुख्तार जुगलकिशोर के हिन्दी अनुवाद तया व्याख्या से युक्त

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