Book Title: Shravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Author(s): Rajkrishna Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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महामस्तकाभिषेक
श्री गोम्मटेश्वर का महामस्तकाभिषेक कुछ वर्षो के अन्तराय से वडी घूमधाम, बहुत क्रियाकाण्ड और भारी द्रव्यव्यय से होता है । सन् १५०० के गिलालेख न २३१ मे इसका जो वर्णन है उसमें अभिषेक करानेवाले आचार्य, शिल्पकार, वढई, और अन्य कर्मचारियो के पारिश्रमिक का व्यौरा है तथा दुग्ध और दही का भी खर्चा लिखा है । सन् १३९८ के गिलालेख न. २५४ (१०५) में लिखा है कि पण्डितार्य ने गोम्मटेश्वर का ७ वार मस्तकाभिषेक कराया था । पञ्चवाण कवि ने सन् १६१२ ई० में शान्ति वर्णी द्वारा कराये हुए मस्तकाभिषेक का उल्लेख किया है व अनन्त कवि ने सन् १६७७ मे मैसूर नरेश चिक्कदेव - राज ओडेयर के मंत्री विशालाक्ष पडित द्वारा कराये हुए और शान्तराज पंडित ने सन् १८२५ के लगभग मैसूर नरेश कृष्णराज ओडेयर तृतीय द्वारा कराये हुए मस्तकाभिषेक का उल्लेख किया है। शिलालेख न २२३ ( ९८ ) मे सन् १८२७ मे होनेवाले मस्तकाभिषेक का उल्लेख है । सन् १९०९ मे भी मस्तकाभिषेक हुआ था । मार्च सन् १९२५ मे भी मस्तकाभिषेक हुआ था, जिसे मैसूर नरेश महाराजा कृष्णराजबहादुर ने अपनी तरफ से कराया था । महाराजा ने अभिषेक के लिए ५०००) रु० प्रदान किये, उन्होने स्वय गोम्मटस्वामी की प्रदक्षिणा की, नमस्कार किया तथा द्रव्य से पूजन की ।
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