Book Title: Shravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Author(s): Rajkrishna Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 114
________________ : ११ बाहुबलि-स्तवन जिस वीरने हिमा को हुकूमत को मिटाया । जिस वीरके अवतार ने पाखण्ड नशाया ॥ जिस वीरने सोती हुई दुनिया को जगाया । मानव को मानवीयता का पाठ पढाया ॥ उस वीर, महावीर के कदमो में झुका सर । ___ जय बोलियेगा एक बार प्रेम से प्रियवर ! कहता हूँ कहानी में सुनन्दा के नन्द की । जिसने न कभी दिल में गुलामी पसन्द की ॥ नौबत भी आई भाई से भाई के द्वन्द की । लेकिन न मोड़ा मुंह, न जुबां अपनी बन्द की ॥ आजादी छोड जीना जिसे नागवार था । वेशक स्वतन्त्रता से मुहब्बत थी, प्यार था । थे 'बाहुबलि' छोटे, 'भरतराज' बड़े थे।। छह-खण्ड के वैभव सभी परों में पड़े थे ॥ थे चक्रवति, देवता सेवा में खड़े थे । लेकिन थे वे भाई कि जो भाई से लड़े थे ॥ भगवान ऋषभदेव के वे नौनिहाल थे । सानी न था दोनों ही अनुज बे-मिसाल थे ॥ भगवान तो, दे राज्य, तपोवन को सिधारे ॥ करने थे उन्हें नष्ट-भ्रष्ट कर्म के आरे । रहने लगे सुख-चैन से दोनों ही दुलारे । थे अपने-अपने राज्य में सन्तुष्ट बिचारे ॥

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