Book Title: Shravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Author(s): Rajkrishna Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 120
________________ श्रवणबेलगोल और दक्षिण के अन्य जैन तीर्थ दोजख का सीन किसलिए हम सामने लाएं ? क्यो नारियों को व्यर्य में विधवाए बनाए ? दोनो के मत्रियो ने इसे तय किया मिलकर । फिर दोनो नरेशो ने दी स्वीकारता इस पर ॥ तब युद्ध तीन किस्म के होते है मुकर्रर ।। जल-युद्ध, मल्ल-युद्ध, दृष्टि-युद्ध, भयकर ॥ . फिर देर थी या? लडने लगे दोनो बिरादर। दर्शक है खडें देखते इकटक किए नजर ॥ कितना यह दर्दनाक है दुनिया का रवैया। लडता है जर-जमों को यहा भैया से भैया । अचरज में सभी डूबे जब ये सामने आया। जल-युद्ध में चकी को बाहूबलि ने हराया ॥ झुंझला उठे भरतेश कि अपमान था पाया । था सव, कि है जग अभी और बकाया ॥ ____ 'इस जीत में बाहूबली के फद की ऊचाई। लोगो ने कहा-खूब ही वह काम में आई !!' भरतेश के छोटे सभी लगते थे गले पर । बाहूबली के पडते थे जा आंख के अन्दर ॥ दुखने लगी आंखें, कि लगा जैसे हो खंजर । आखिर यो, हार माननी ही पड़ गई यक कर ।। ढाईसौ-धनुष-दुगनी थी चक्रोश की काया । लघु-भात को पच्चीस अधिक, भाग्य की माया॥ फिर दृष्टि-युद्ध, दूसरा भी सामने आया । मचरज, कि चक्रवति को इसमें भी हराया ॥ लघु-भात को इसमें भी सहायक हुई काया । सव दग हुए देख ये अनहोनी-सी माया ।।

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