Book Title: Shravak Nitya Krutya
Author(s): Jinkrupachandrasuri
Publisher: Nirnaysagar Press
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( ७४ )
भुवणे ॥ ता तेलकुद्धरणे, जिणवयणे आयरं कुणह ॥ ४० ॥ गाहा ॥ इति श्रीवृहद जितशांतिस्तवनं प्रथमस्मरणम् ॥ १ ॥
उल्लासिक्कमनरकनिग्गयपहादंडच्छलेणंगिणं, बंदारूण दिसंत इव पयर्ड निवाणमरगावलिं ॥ कुंदिंदूज्जल दंतकंति मिसओ जीहंत नाणंकुरु, केरे दोविदुइज्ज सोलस जिणे थोसामि खेमंकरे ॥ १ ॥ चरम जलहिनीरं जोमिणिजंजलीहिं, खयसमयसमीरं जो जणिजागईए || सहलनह लंबा लंघए जो पएहिं, अजिअ महव संतिं सो समत्थो स्थुणेउं ॥ २ ॥ तहविहु बहुमाणुल्लासभत्तिष्भरेण, गुणकणमिव कित्ती हामि चिंतामणिव || अलमहव अचिंताणंतसामत्थओसिं, फलहर लहु सर्व वंछिअं णिच्छि मे || ३ || सयलजयहिआणं नाममित्तेण झाणं, fasse दुट्ठा निदोषद्वथट्टं || नमिरसुर किराडू ग्गिट्ठपायारविंदे, समय मजिअ संती ते जिणिदेभिवंदे || ४ || पसरह वरकित्ती वढ्ढए देहदित्ती, विलसह भुवि मित्ती जायए सुप्पवित्ती || फुरइ परमतित्ती होइ संसारछित्ती, जिणजुअपयभत्ती हीअचिंतोरुसत्ती ॥ ५ ॥ ललियपयपयारं भूरिदिवंगहारं, फुडगणरसभावो दारसिंगारसारं ॥ अणमिसरमणीज्जहंसणच्छे अभीया, इव पुणमणिबंधा कासि नहोवयारं ॥ ६ ॥ थुणह अजिअसंती ते कया सेससंती, कणयरयपसंगा छञ्जए जाणिमुत्ती || सरभस परिरंभारंभ निवाणलच्छी, घण थणघुसिणिक्कु पंपिंगtara ॥ ७ ॥ बहुविनयभंगं वत्थुणिचं अणिचं, सदसदणभिलप्पा लप्पमेगं अगं ॥ इय कुनयविरुद्धं सुप्पसिद्धं तु जेसिं, वयणमवयणिअं ते जिणे संभरामि ॥ ८ ॥ पसरइ तिअलोए ताव मोहंधयारं, भमइ जय मसण्णं ताव मिच्छत्त छण्णं ।। फुरइ फुडफलंताणतणाणं सुपूरो, पयडमजिअसंती झाणसूरो न जाव
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