Book Title: Shravak Nitya Krutya
Author(s): Jinkrupachandrasuri
Publisher: Nirnaysagar Press
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(१५१) प्रकास्यो भविक जन आनंदनो, सर, नय, निधि, भू (१९७५) विक्रमवरसै पोषवदिएकादशी, जिनकृपाचंद्रसूरिपभण सुगुरु सेवो उल्लसी ॥ सु० ॥ २२ ॥ इति इग्यारशवृद्धस्तवनम् ॥
॥रोहिणी तप स्तवनं ढाल पहेली ॥ वर्द्धमानजिनवरनमी, सुयदेवीसुपसाय । रोहिणीतप विधि वर्ण, शास्त्रथकी चितलाय, ॥१॥ कल्याणक ओली भली, पंचम्यादि तप जाण । इम बहुविधतपवर्णव्यो, 'तिम रोहिणी मन आण ॥२॥ हारे मारा ठामधर्मनासाढापचवीसदेशजो ॥ एदेशी ॥ हारे म्हारे जंबूद्वीपमांभरतक्षेत्रमनुहारजो, अंगदेशनगीनो सोहेअतिभलोरेलोय ॥ हां० ॥ चंपानामें सुंदरनवलीनयरीजो, वासुपूज्यनन्दन जगवन्दननृपतिलोरे लोय ॥ ३ ॥ हां०॥ मघवाराजा जगतदिवाजातत्थजो, कमलाराणी सीयलसुहाणीरायने रे लो ॥ हां० ॥ सुखभोगवतां पुन्य तणे परभावजो, आठपुत्र थयाराणी मनमां भायनेरे लो० ॥ ४ ॥ हां० ॥ तेउने ऊपर रोहणी नामे पुत्री जो, मात पिताने वाहली घणी ते ऊपनीरे लो० ॥ हां० ॥ चंद्रकलाजिम पुत्रीवधेसुहेण जो, पांचधाय करि पालतां योवनवयनीपनीरे लो० ॥५॥ हां० ॥ सुरकुंवरीसम देखी राजा पुत्रीजो, वरचिन्तामनपेठी रायनेतिणसमेंरे लो. ॥ हां० ॥ स्वयम्बरामण्डपमांड्यो पुहवीनाथ जो, देशदेशना भूपतितेड्या सुख समेरे लोय ॥ ६॥ हां० वीतसोकराजानो नन्दननाम जो, सोभागी गुणरागी कन्याये वोरे लो० हां० पूरवभवना पुन्यथी थयोविवाहजो, बहुलीसम्पदापामीकुंवरकारजसोरे लो० ॥७॥ हां०॥ रङ्गरलीथइ सहु पहोता निजठाम जो, चित्रसेनने राज्य
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