Book Title: Shravak Nitya Krutya
Author(s): Jinkrupachandrasuri
Publisher: Nirnaysagar Press

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Page 162
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५३) सलूणी बो० ॥ १६ ॥ राजा इण परि विचारे, कोई ज्ञानि गुरुपाउधारे, तो एह संदेहनिवारे, जिनकृपाचंद्रसरि सुखसारे, ॥ १७ ॥ ॥ ढाल तीजी रंगरसीयारंगरसवन्यो मनमोहनजी ए देशी ॥ इकदिनज्ञानिपधारिया, सुणोसुगुणाजी, वासुपूज्यस्वामीना अणगार, गच्छपतिआव्यारे सुणोसुगुणाजी, रूपकुंभ स्वर्णकुंभजी, सु० चउनाणीकरेउपगार, गच्छ० ॥ १८ ॥ राजादिक वंदनगया, सु० देसनादीधी उदार, ग० करजोडी राजा भणे, सु० रोहिणीनो अधिकार, ग. सु० ॥ १९ ॥ मुझमनअचरजअतिघणो सु० कृपाकरी कहो सुविचार गच्छ० सु० पूरवभवमुनिवरकह्यो, सु० तेहसुण्यो दिलधार, गच्छ० सु० ॥ २० ॥ जंबुद्वीपना भरतमा, सु० सिद्धपुरनगरकहवाय, ग० सु० पुहवीपालराजा तिहां सु० सिधमती राणी सुहाय, ग० सु० ॥ २१॥ इकदिन क्रीडाकारणे, सु० चन्द्रउद्यानमें जाय, ग० सु० क्रीडा करता पधारिया, सु० गुणसागर मुनि महाराय, ग० सु० ॥२२॥ मुनिनेबांदी राजाकहे, सु० राणी मुनिने देवो दान, ग० सु० विषयनी अन्तराय मानती, सु० कडवी तुंबी देइ कीधो हेरान, ग० सु० ॥ २३ ॥ कालधर्म पाम्यो मुनिवरु सु० राणीने काढीराय ॥ ग०॥ स०॥ सातमे दिन कोढ ऊपनो, मरी छठी नरकते जाय, ग० सु० ॥२४॥ नरकतीर्यचना भव कयों ॥ सु० ॥ इम काल अनन्तो जाण ग० सु०॥ श्रीजिनकृपाचंद्रसरि भणे ॥ सु० ॥ तुमे न करो पाप सुजाण, ॥ ग०॥ सु०॥ २५॥ For Private And Personal Use Only

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