Book Title: Shravak Nitya Krutya
Author(s): Jinkrupachandrasuri
Publisher: Nirnaysagar Press

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Page 176
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६७) उपधान ॥३॥ विधिसेति वहियै गुरुमुखसुणि सुविचार पिन श्रीमहानिशीथे भाख्योएअधिकार । सिद्धायिकादेवी वांछितदे निरधार । जिनकृपाचंद्र सूरि तपसेव्या जयकार ॥ ४ ॥ इति थुइ० ॥ (अथ उपधान चैत्यवंदन लि.) वीरजिनंदे भाखीयोः उपधानतपविस्तार । सूत्रे गणधर साखियोः महानिशीथमझार ॥१॥ पहलोवीसड नवकारनोः इरिया वीसड़जानः भावस्तव पेतीशनो ठवणास्तवचउआण ॥२॥ लोगस्स अठावीस नो। दव्वत्थवछक्कड़होय । माला उपधान सातमो । सिद्धाणं बुद्धाणं जोय ॥३॥ सातभय निवारवा । सातकरो उपधान । क्रिया शुद्ध करवातणो। एहउपाय सुजान ॥४॥ विधि योगे आराधियेए । तप उत्तम सुखकार । जिन कृपाचंद्रमरिसदा। आगमनो आधार ॥ ५॥ इति चैत्यवंदनं० ॥ इति श्रावकनित्यकृत्यसंपूर्णम् ॥ For Private And Personal Use Only

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