Book Title: Shravak Nitya Krutya
Author(s): Jinkrupachandrasuri
Publisher: Nirnaysagar Press

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Page 163
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५४) ॥ ढाल चोथी॥ जिम २ गिरिवरभेटियैरे तिम २ पाप पुलायसलूणा ॥ एदेशी।। ते राणी भवचक्रमारे, दुःखसह्याअनन्त, सलूणा तारापुरमाहे वसेरे, धनमित्रसेठमहन्त, ॥ स० ॥ २६ ॥ कर्मतणीगति जाणजोरे, कर्मकरो नहिंकोय, स० धनवतीकूखे ऊपनीरे, दुर्गधा नाम होय, स० ॥२७॥ एकवणिकना पुत्रनेरे, परणावी सुरसाल, ॥स० ॥ पतिसंयोगे ऊच्छलीरे दुर्गंधतातत्काल, स० ॥ २८ ॥ त्रासपामीतेहनोधणीरे, परदेशेंगयोनाश ॥ स०॥ ज्ञानिने पूछे पितारे, दुर्गंधानो त्रास, स० ॥ २९ ॥ ज्ञानि पूर्वभव कहेरे, प्रतिकार पूछे खास, स. गुरुकहे रोहिणी तप करोरे, सातवरस सातमास, स० ॥ ३० ॥ रोहिणीनक्षत्रने दिनेरे, चोविहारउपवास, स० ॥ अठपोहरीपोषधकरोरे, वासुपूज्य पूजो खास, स०॥ ३१ ॥ इमरोहिणी तपआदरीरे, सेवि विधियुत सार, स० ए ताहरी राणीथइरे, रोहिणीनामे नार, स० ॥ ३२ ॥ पूर्वभव रोहिणीतणोरे हरखितथया सुणि तेह, स० ॥ जिनकृपाचंद्रसरि सेवजोरे धर्मधरिससनेह, स० ॥ ३३ ॥ ॥ ढाल पांचमी॥ जइने कहजो म्हारा वालाजीरे ए देशी । राजा कहे मुनिराजने मारा वालाजीरे रोहिणीतप विधिसार, गुण निधि वंदिये, मा० तब मुनिवर तप विधि कहे, मा० चित्रसेनने रोहिणीनार, बिहुँ तपविधिसुणे, मा० ॥ ३४ ॥ चन्द्ररोहिणीदिनतपकरो, मा० बारमा जिनवर सेव, करिये भावसुं, मा० गुणनो करो गुरु For Private And Personal Use Only

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