Book Title: Shravak Nitya Krutya
Author(s): Jinkrupachandrasuri
Publisher: Nirnaysagar Press

View full book text
Previous | Next

Page 164
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५५) मुखसुणी, मा० पांचसक्रस्तवदेव, त्रिहुंकालबांदिये, मा० ॥ ३५ ॥ देवजुहारो देहरे, मा० प्रभु आगल वृक्ष अशोक, करिये भावशुं मा० नैवद्य नाना भांतिना, मा० प्रभु सन्मुखढोवे थोक, चढते भावशुं मा० ॥ ३६ ॥ केशरचंदनमृगमदा, मा० पूजो प्रभु ऊच्छरङ्ग नानाभांतशुं मा० आठमङ्गलप्रभुआगलै, मा० रचियें तन्दुलउज्जलचङ्ग, दुरितनिवारणो ॥ मा० ॥ ३७ ॥ पुस्तक पूजो भावशुं मा० साधु सेवा करो सार, भव सागरतरो, मा० देवोदान सुपात्रने, मा० साहमीवत्सल अधिकार, करे मन रंगशुं ॥ मा० ॥ ३८ ॥ उज्जवणो कीजै भलो, मा० ज्ञानादि उपगरण करे सार, नाना भांतिना, मा० सत्तावीससंख्याकही मा० अथवा शक्ति तणे अनुसार, धनखरचे घणो मा० ॥ ३९ ॥ ब्रह्मचर्य पालो मुदा मा० उत्सव विविध प्रकार, करिये उमङ्गसुं मा० शासन सोभवधारिने मा० रथ यात्रा सुखकार, चउविध संघ मिली मा० ॥ ४० ॥ इणपरे रोहिणी विधिकही मा० राजा राणी तीर्थंकर पास, विधिसुं तपग्रहे मा० श्रीजिनकृपाचंद्रसूरिभणे मा० भव भव धर्मसेवो भविखास, सर्वसुखसंपजै मा० ॥ ४१ ॥ ॥ ढाल छठी राग धन्यासरि ॥ रोहिणीतपसेविने राजादिक, उजवणोकियोभावै, वासुपूज्य - स्वामीने पासै, दीक्षाथी चित्तलावैरे, भवि भावधरिने सेवो, एतोसेविसिवसुखलेवोरे, भवि० ।। ४२ ।। चित्रसेनराय रोहिणीराणी, दीक्षालीधिगुणखाणी, आठेपुत्रे संजमलीनो, वरवा सिवपटराणीरे भवि० ॥ ४३ ॥ संजमसेवीने राजादिक, आतम तत्वनिहाली, For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178