________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रावक नित प्रति नियम संभाले । दिनमें जो वस्तु अपने अंग खातै लागै । उसीका प्रमाण रक्खै । उपरांत त्याग करै । तिहां प्रथम (सचित्त वस्तुको परिमाण करै) मट्टी सर्व जाति । पाणी सर्व जाति । जल-अग्नि-वायु । वनस्पतीका छेदन भेदन । तरकारी सर्व जाति । फल सर्व जाति । परवल । तोरी केला । इत्यादि सचित्तका परिमाण करै ॥ १॥ * ॥
॥ दूसरा द्रव्य परिमाण ॥ तिहां धातु वस्तुकी शली । (तथा) अपणी आंगुली बिना । जो वस्तु मुखमै दीजै । सो सर्व द्रव्यकी गिणतीमें आवै । नामांतर । खादातर । स्वरूपांतर । परिणामांतरा । द्रव्यांतर होणेसें अलग द्रव्य होवै । ( यथा) गहुं एक द्रव्य । तिसकी पतली रोटी । फीणा रोटी । बेढ़वा रोटी । बाटी । यह सर्व द्रव्य जूदा कहियै । (इस प्रकारै) सर्व द्रव्य खांणमें आवै । भात दाला । रोटी । माडियो । पलेव । तरकारी सर्व जाति । पापड़ । खीचीया । लड्डु सर्व जाति । फिणीधेवर । खाजा । ( इत्यादि समस्त द्रव्य परिमाण करै) इहां उत्कृष्ट द्रव्यको नाम ले रक्खै । (तो) एकही द्रव्य कहीयै । ( जैसे) मेपैकी खीचड़ीका नाम लेके रक्खे । (सो) अनेक द्रव्य निष्पन्न है । (परंतु ) एक द्रव्य कहियै ॥ * ॥ इति द्रव्य प्रमाण दूसरा नियमः ॥२॥ * ॥
॥तीसरा विगय परिमाणनियमः॥ (तहां ) दश विगयमें च्यार महा विगयका तो त्याग होता
For Private And Personal Use Only