Book Title: Shravak Nitya Krutya
Author(s): Jinkrupachandrasuri
Publisher: Nirnaysagar Press
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(१२१) करलिहिय । सोवनअक्षरअंब । जुगप्रधानजगपडिया। सिरि पडिबिंब ॥ ४ ॥ जिण चउसठिजोगिण जणिय । खित्तपाल बावन्न । साइणि डाइणि विजुलिय । पुहविह नामनयन ॥५॥ सूरिमंत बलकर सहिय । साहिय जिम धरणिंद । साबय साविय लक्ख इग । पड़िवोहिय जिणबिंब ॥ ६॥ अरिकरि केसरि दुहृदल । चउविहदेव निकाय । आणनलोपै कोइजुगे । जसु प्रणमें नरराय ॥ ७ ॥ संबतबार इग्यारसमें । अजयमेर पुरठान । इग्यारसि आसाढ सुदि । सगपत्त सुहझांण ॥ ८॥ श्रीजिन बल्लहरिपए । श्रीजिनदत्तसुरींद । विनहरण मंगलकरण । करो पुन्य आनंद ॥ ९॥ इति श्रीजिनदत्तसूरि अष्टकं ॥
॥श्री जिनकुशलसूरिजी उत्पत्ति स्तोत्रलि० ॥ रिसह जिनेसर सोजयो । मंगल केलि निवास । बासवबंदिव पय कमल । जगसहु पूरै आस ॥ १॥ (चौपइ) चंदकुलंवर पूनिम चंद । बंदो श्रीजिनकुशलमुणिंद । नाम मंत्र जसु महिम निवास । जो समरै तसु पूरै आस ॥२॥ मरुमंडन समियाणो गांम । धणकण कंचन अति अभिराम । जिहां बसै जिल्हागर मंत्र । जैतसिरी तसुधरणी कलत्र ॥ ३॥ जर तीसै जाम । सैतालै सिर संयम रम्म । पाटण सतहत्तरै जसुपाट । निव्यासियै तसुसुरगै वाट ॥ ४ ॥ मंडल सरगै पायाल । अचिरा चिर जुगइणकलि काल । गुरु प्रताप नविमान सोय । मै नविनयणे दीठोजोय ॥५॥ निरधन लहै धन धन्न सुवन्न । पुन्नहीण पांमें बहुपुन्न । असुखीपांमें सुख संतान । एक मना करतां गुरुध्यान ॥ ६ ॥ गुरु समरण
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