Book Title: Shravak Nitya Krutya
Author(s): Jinkrupachandrasuri
Publisher: Nirnaysagar Press

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Page 151
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४२) वांछित सिद्ध ॥ भ० ॥ ५ ॥ दुविधधर्म जिनवरकडोजी, देशने सर्वविरत्त, धर्म शुकल दोयध्यानमांजी, होय सदा निरत्त ॥ भ० ॥६॥ अर्थ प्रकासे जिनवरूजी, सूत्ररचे गणधार, विहूं सेवे वाचंयमीजी, द्वादश अंग विचार, ॥ भ० ॥ ७॥ (ढाल दूसरी)॥ नमोरे नमो सेबूंजगिरिरे ॥ एदेशी ॥ बीजदिवसमां जानियेरे, कल्याणक सुविसालरे, श्रावण सुदि बीजे चव्यारे, सुमतिनाथ दयालरे, नमोरे नमो जिनचंद्रनेरे ॥१॥ माघमासनी ऊजलीरे, बीज दिवसमां जागरे, अभिनंद जनम्या प्रभुरे, त्रिहुं जगना महिराणरे ॥ नमो रे० ॥२॥ ए हीज तिथी वासुपूज्यजीरे, पाम्यो केवलनाणरे, फागुणसुदिबीजे जानियेरे, अरनाथचवन सुजाणरे ॥ नमोरे० ॥३॥ समेतसिखरपर सिववर्यारे, सीतल जिनवरनाणरे, चैतवदिवीजसुंदरुरे, अविचलसुखमनआणरे, ॥ नमो० ॥ ४॥ इम कल्याणक इनतिथीरे, काळ अनंते होयरे, अणंत कल्याणक जाणजो रे, एह आगमविधि जोयरे ॥ नमो० ॥ ५ ॥ तपपूरणहूवा थकारे, उज्जमणो सुविवेकरे, रत्नत्रयी आराधवारे, धन खरचो बहुछेकरे ॥ नमो० ॥ ६॥ सीमंधरादि जिनवरारे, विहरमानजिनवीसरे, मनमंदिरमांआवजोरे, जिनकृपाचंद्रसूरीसरे नमो० ॥७॥ इति बीजका स्तवन संपूर्णम् ॥ ॥अथ पंचमिका वृद्ध स्तवन लि०॥ दुहा ॥ सिद्धारथ कुल दिनमणि । त्रिसलादेवि सुजात ॥ वर्द्धमानजिनचंदकु । नमन करि परभात ॥१॥ गुरुदरियो भरियो गुणै, किण विधि तरियो जाय ॥ बलिहारि गुरुदेवनी, मोमनरह्यो लोभाय ॥२॥ जिन वाणी पीयूपरस, पानकरो निशिदीश ॥ For Private And Personal Use Only

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