Book Title: Shravak Nitya Krutya
Author(s): Jinkrupachandrasuri
Publisher: Nirnaysagar Press
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( १४७ )
चलि । इम अधिकार छे भूरिरे || आ || ५ || सामायक पहिलां को । पाछल हरियानो पाठ रे । जाणे पण माने नहिं । एह कर्मनो ठाठ रे || आ० || ६ || विधिथी सामायिककरो । जिमपामो भवपारोरे ॥ अविधिथी किरियाकरि । नवि छूटे भवनो लारोरे ॥ आ० ॥ ७ ॥
॥ ढाल बीजी यतनी ॥
परवतिथिये पौषधकरिये । शुद्धआगमने अनुसरिये । वलि आठ कर्मने हरिये । सलूणा भावभले आराधी, एतो आराधि सिवसुख साधो । सलूणा आठमतिथी आराधो ॥ १ ॥ आठम दोय चउदस कहिये । अमावस पूनिम लहिये । एह छ तिथी चारित्र वहिये || स० ॥ भा० ॥ २ ॥ वली कल्याणकतिथी जाणो । पज्रषण मनमां आणो । इत्यादिकपर्वपिछाणो ॥ स० ॥ भा० ॥ ३ ॥ बीजेअंगे पांच अंगे । उपाशकदशा सुखसंगे । आवश्यकटीका उमंगे || स० ॥ भा० ॥ ४ ॥ इत्यादिक आगम साखे । परवतिथिये पौषभाखे । विधियुत करताफलचाखे ॥ स० ॥ भा० ॥ ५ ॥ जे नित्यपौषधने ताणे । आगम विधि ते नवि जाणे । हरिभद्र वचनपरमाणे || स० ॥ भा० ॥ ६ ॥ ॥ ढाल ३ जी जइने कहेजो मारा वालाजीरे ए देशी ॥
आठम परa तिथीकही । मारा वालाजीरे । आराधो गुण गेह | जगगुरु वंदिये । मारा वालाजीरे । एह तिथी कल्याणक घृणा । मारा वालाजीरे । त्रिहुं कालना गिणो तेह | जगगुरु वं० मारा वालाजीरे || १ || आचारांगमां भाखिया || मा० ॥ वा० ॥ भावनाअध्ययनसार ॥ ज० ॥ मा० ॥ ठाणांगठाणेपाचमे || मा०
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