Book Title: Shravak Nitya Krutya
Author(s): Jinkrupachandrasuri
Publisher: Nirnaysagar Press

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Page 154
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४५) जाणियेरे, ला० अनुयोगद्वारमझाररे ॥ सु० ॥ ज्ञा० ॥ २६ ॥ उपगारि श्रुतनाणथीरे, जाणे आज त्रिकालरे ॥ सु० ॥ परबोधकश्रुत सैवियेरे लाल, सदगुरुचरणनिहालरे ॥ सु०॥ज्ञा० ॥२७॥ वायण प्रछना परावर्त्तना रे, अनुपेहा दिलधाररे ॥ सु० ॥ धर्मकथा कही कीजीयेरे ॥ ला० ॥ सझाय पांच प्रकाररे॥ सु० ॥ ज्ञा० ॥२८॥ अंग इग्यार बार उपांगछेरे, दश पयना नंदीशरे ॥ सु० ॥ छछेद चउमूल दिलधरोरे ला० ॥ अनुयोगदार पैतालीशरे ॥ सु०॥ ज्ञा० ॥ २९ ॥ ढाल चोथी ॥ गरवेनी ॥ स्वामीशरीरसोसाइ गयो ॥ एदेशी ॥ ज्ञानभजो भविप्राणीया, वंछितफलदातार, ज्ञानी दीपक समकह्यो, सूत्रै श्रीगणधार ॥ ज्ञान० ॥३०॥ सुरतरु सुरमणि सुरगवि, कल्पलताअनुकार, एहथीअधिकोजाणिये, महिमा अगमअपार ॥ ज्ञा० ॥ ३१॥ कालअनादिलगे भम्यो, मिथ्यामति भवमाय, सम्यग्रज्ञान प्रगटे यदा, भवमें न रहाय ॥ ज्ञा० ॥ ३२ ॥ समकितगुणप्रगटाबवा, त्रणकरणकरेजीव, समकितज्ञान एकणसमे, लहै सुखअतीव ॥ ज्ञा० ॥ ३३ ॥ देशविरतिपातदा, पल्यपहुत्तस्थितिजाय, संख्यातसागरगया चरणधर, ज्ञानादिकचितलाय ॥ ज्ञा० ॥ ३४ ॥ घातिकरमनो क्षयकरी, केवलज्ञानप्रकाश, भव्यकमलप्रतिबोधता, विचरे भगवंतखास ॥ ज्ञा० ॥ ३५॥ ज्ञानचरणदोयभेदछै, मुक्ति कारणजाण, तपसंजमबिहुँदाखिया, भावए मनमांआण ॥ ज्ञा० ॥ ३६ ॥ पंचमिआराधनाकरि, ज्ञानभगतिकरो सार, तपपूरणथयां कीजिये, उजमणो सुविचार, ॥ ज्ञा० ॥ ३७॥ पांच पांच ज्ञानादिना, उपगरण करो सार, धनखरचो बहुभावथी, लहो पुन्य १. श्रा०नि० For Private And Personal Use Only

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