Book Title: Shravak Nitya Krutya
Author(s): Jinkrupachandrasuri
Publisher: Nirnaysagar Press
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(१४४) करीने, पोथीपूजो सुविचारी ॥ स० ना०॥ १३ ॥ गीतारथगुरु चरणनमीने, नंदिविधिकरि हितकारी ॥ स० ना० ॥१४॥ गुरुमुखउपवासभावेकरीने, पडिक्कमिटालो अतिचारी ॥ स० ना० १५॥ शास्त्रमणोश्रीसद्गुरुपास, पंचमीदिनआरंभटारी । स० ना० ॥१६॥ पांचवरसपांचमासनेउत्कृष्ट, जावजीवकरे इकतारी ॥ स० ना० ॥ १७ ॥ पांचमासलघुपंचमीकीजै, स्तवनथुइकहे ब्रह्मचारी ॥ स० ॥ ना० ॥ १८ ॥ ढालतीजी ॥ पहलोअंग सुहामणोरे ॥ एदेशी ॥ ज्ञाननमोगुणभविजनारे, नाणप्रकाशकजाणरे सुगुणनर, पंचमीतपविधियुतकरीरेलाल, पामो अविचलनाणरे ॥ सु० ॥ ज्ञा० ॥ १९ ॥ दोयभेदे नाणजाणीयेरे । निश्चयने व्यवहाररे ॥ सु०॥ त्रणअनुयोगव्यवहारमारे ॥ ला०॥ द्रव्य निश्चय सुखकाररे ॥ सु०॥ ज्ञा० ॥ २० ॥ पांचज्ञानना भेदछे रे, इकावनसुविशेषरे ॥ सु० ॥ भिन्नभिन्न ते दाखव्यारे ॥ला०॥ तेह कहुं लवलेशरे ॥ सु० ज्ञा० ॥२१॥ मतिज्ञानना जाणियेरे, आठावीश प्रकाररे ॥ सु०॥ श्रुतनाचवदेनेवीशछेरे, अक्षरादिक सुविचाररे । सु० ॥ ज्ञा० २२ ॥ अवधि छ असंखभेदछेरे, मनपर्यवदुगजाणरे ॥ १० ॥ लोकालोक प्रकाशको रे ॥ला. केवल मनमें आणरे ॥ सु० ज्ञा० ॥ २३ ॥ तीनज्ञान प्रत्यक्षछैरे, देशसर्व सुजगीशरे ॥ सु० ॥ अवधिमनपर्यव बलिरे ॥ ला० ॥ देश प्रत्यक्ष कह्या ईशरे ॥ सु० ॥ ज्ञा० ॥ २४ ॥ केवल सर्व प्रत्यक्षनेरे, ध्यावो परमपवित्ररे । सु०॥ दोय परोक्ष पिछाणियेरे ॥ ला० मतिश्रुतभेदविचित्ररे ॥ सु० ॥ ज्ञा० ॥ २५ ॥ च्यार ज्ञान ठप्पाकटारे, श्रुत अनुयोग विचाररे ।। सु० उद्देशादिक
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