Book Title: Shravak Nitya Krutya
Author(s): Jinkrupachandrasuri
Publisher: Nirnaysagar Press

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Page 144
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३५) ॥ २ ॥ नंदीसर दीपेजई। उच्छव करे सुरराज । तिम श्रावक आराधतां । सारे वांछितकाज ॥३॥ आस्रव कषाय निवारिने । समायक करो शुद्ध । जिनपूजा परभावना । करिने तरो भव बुद्ध ॥ ४ ॥ कल्पसूत्रसुणो इकमना । संवच्छरी पडिकमिये । जिनकृपाचंद्रसूरि सेवतां । भवमा नवि भमिये ॥ ५॥ इति ॥ ॥ अथ नवपदजी चैत्यवंदनं लि०॥ ८॥ श्रीअरिहंतनाबारगुण, सिद्धनाआठकहाय ॥ छत्तीशगुण सूरितणा । पचवीसकह्या उवज्झाय ॥१॥ मुनिवरगुण सत्तावीसछै । दरशणसडसठजोय । ज्ञानइकावनभेदछ । चारित्र सित्तर होय ॥ २ ॥ तप पञ्चाशगुण जाणियै । नवपदनाश्रीकार ॥ एकंदर सहुध्याइये । त्रणसैच्छयालीश सार ॥३॥ आंबिलकरि आराधियै । नवओली सुजगीश । त्रिकरणयोगेध्यावतां । जिनकृपाचंद्रसूरीश ॥४॥ इति ॥ ॥ अथ रोहिणीतप चैत्यवंदनं ॥ ९॥ . वासुपूज्यजिनवरनमुं, बारमजिनसिरताज, रोहिणीतप आराधतां, सारे बांछितकाज, ॥१॥ चोविहारउपवासकार, पूजक पूजीदेव, दोयसहसगुणनो करी, त्रिकरणथिरकरोसेव ॥ २ ॥ सत्तावीशलोगसतणो, काउसग्ग दिलधार, खमासमणदेइभावथी, प्रदक्षिणासुविचार, ॥३॥ स्वस्तिककरि फलढोइयै, पूजाविविधप्रकार, जिनकृपाचंदररिसेवतां, पामे भवनोपार, ॥४॥ इति रोहणीतपनो चैत्यवंदनं सं०।) ॥अथ श्रीवीरजिन चैत्यवंदनं ॥१०॥ चोविसमजिनवर नमुं, महावीरजिनदेव, शांति सुधामय चं For Private And Personal Use Only

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