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(१११) अखंड नियम होवे, तो समताभावरखकें संवरपणामें रहे. परतु० मुखसें नवकार मंत्रकामी उच्चारण करे नहिं. स्थापनाजीके हाथ लगावे नहिं ओरजो मृतककों छुवा न हो मात्र आठ प्रहर पडिक्कमण न करे ॥.किसीकु न छीवे तो दोय स्नानसें शुद्ध भैसके जब बच्चा होय, तब १५ पनर दिन पीछे दूध पीणो कल्पे. गायके बच्चा होय तो १० दश दिन पीछे दुध पीणो कल्पे. बकरीको दुध ८ आठ दिन पीछे पीणो कल्पे ॥
॥१ ऋतुवती स्त्री, चार दिन भांडादिकको न छुवे. २ चार दिन प्रतिक्कमण न करे, ३ पांच दिन देवपूजा न करे. ४ रोगादिक कारणे तीन दिवस उपरांत कोइ स्त्रीको रक्त चलता दीसे, जिसका विशेषदोष नहिं ॥ शुद्ध विवेकसें पवित्र हो कर दिन ५ पांच पीछे स्थापना पुस्तक छुवे, जिनदर्शन करे, अग्रपूजा करे, परंतु अंगपूजा न करे, साधुकों पडि लामे. ऋतुवंती तपस्या करे, सो तो सफल होय. परंतु ऋतुदिनमें जिनपूजा प्रतिकमणादिक क्रिया सफल न होवे, ऐसा चर्चरी ग्रंथमें कहा है. जिसके घरमें जन्म मरणका सुतक होवे, उहां १०॥१२ वार दिन तक साधु आहार पाणी न वहोरे. सुतकवाले का घरका जलसें तथा अग्निसें १२ बार दिन तक देवपूजा न करे. निशीथसुत्रके शोलमा उदेशामें जन्म मरणके सूतकवालेका घर दुगंच्छनीक कहा हे. गायके मूत्रमें २४ चोवी प्रहर पीछे. भैसके मूत्रमे १६ सोल प्रहर पीछे गाडर. गधेडी. घोडीके मूत्रमें ८ आठ प्रहर पीछे. नर नारी के मूत्रमें अंतरमुहूर्त पीछे. संमूच्छिम जीव उपजे. इत्यादि सूतकका संक्षेप विचार इहां
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