Book Title: Shraddh Vidhi Prakaran
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Aatmtilak Granth Society

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ भूमिका यह बात तो निर्विवाद ही है कि जिस धर्मके आचार विचार सम्बन्धी साहित्य का समयानुसार जितने अधिक प्रमाण में प्रचार होता है उसके आचार विचार का भी उस धर्मके अनुयायी समाज में उतने ही अधिक प्रमाण में प्रचार होता है, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यही है कि आज गुजराती जैन समाज में जितना जैनधर्म के आचार विचार का अधिक प्रचार है उतना मारवाड़, यू० पी०, पंजाब और बंगालके जैन समाज में नहीं है। क्योंकि गुजरात में गुजराती भाषामें जैनधर्म के आचार विचार-धार्मिक क्रियाकाण्ड विषयक साहित्य का समयानुकूल काफी प्रकाशन हो गया है और प्रतिदिन हो रहा है। परन्तु एक गुजरात को छोड़ अन्य देशके निवासी जैनियों में प्रायः अधिकतर राष्ट्रभाषा हिन्दीका ही प्रचार है और हिन्दी भाषामें अभी तक उन जैन ग्रन्थोंका बिलकुल कम प्रमाण में प्रकाशन हुआ है कि जिनके द्वारा समाज में धार्मिक आचार विचार एवं क्रियाकाण्ड का प्रचार होना चाहिये। ____ यद्यपि पूर्वाचार्यों द्वारा रचित जैन साहित्य प्राकृत एवं संस्कृत में आज विशेष प्रमाण में प्रकाशित हो गया है परन्तु विद्वान् त्यागीवर्ग के सिवा श्रावक समाज उससे कुछ लाभ नहीं उठा सकता। उसे यदि अपनी नित्य बोलचाल की भाषामें उस प्रकारके ग्रन्थोंका सुयोग मिले तब ही वह उसका लाभ प्राप्त कर सकता है । इसी कारण मैंने हिन्दीभाषा भाषी कई एक सजनों की प्रेरणा से जैनसमाज में आज सूत्रसिद्धान्त की समानता रखने वाले और श्रावक के कर्तव्यों से परिपूर्ण श्राद्धविधि प्रकरण-श्रावक विधि नामक इस महान् ग्रन्थ का गुर्जर गिरासे राष्ट्रभाषा हिन्दीमें अनुवाद किया है । . साधारण ज्ञानवान धर्मपिपासु मनुष्यों का सदैव धार्मिक क्रियाकाण्ड की

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 460