Book Title: Shikshan Prakriya Me Sarvangpurna Parivartan Ki Avashyakta
Author(s): Shreeram Sharma, Pranav Pandya
Publisher: Yug Nirman Yojna Vistar Trust

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Page 8
________________ शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता | ७ बनती है, पर शिक्षा के देवता तो हाड़-माँस के होते हैं—पढ़े-लिखे, सुयोग्य, सुशिक्षित और भावनाशील। यदि देश का भविष्य उज्ज्वल होता है तो उसमें प्रधान भूमिका नई पीढ़ी की होगी। नई पीढ़ी को प्रखरता के ढाँचे में ढालने में समर्थ यदि कोई शक्ति है, तो वह शिक्षा के मूर्तिमान देवता शिक्षक की उत्कृष्टता ही है। उसी पर भावी प्रगति की आशा केंद्रीभूत समझी जा सकती है। विद्यार्थी अपने समय का महत्त्वपूर्ण भाग अध्यापकों के साथ रहकर विद्यालयों में गुजारते हैं। उनके प्रति सहज श्रद्धा और कृतज्ञता का भाव भी रहता है। जो विद्या दान देते हैं, उच्च शिक्षित हैं, अपनी सहायता से छात्रों को भावी जीवन में सुयोग्य, संपन्न बना सकने के लिए अभूतपूर्व भूमिका निभाते हैं, उनके उपकारों को कोई कैसे भुला सकता है ? उनसे आयु में ही नहीं हर हालत में छोटी स्थिति वाले छात्रों पर उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व की छाप पड़नी ही चाहिए। अध्यापकों का अनुशासन सहज स्वाभाविक है। आते-जाते समय उनका अभिनंदन होता है। उनके कक्षा में प्रवेश करते ही स्तब्धता छा जाती है। जो बच्चे घर में उदंडता बरतते हैं, वे भी स्कूल के अनुशासन में सीधे हो जाते हैं। कोई जरूरी नहीं कि इसके लिए हमेशा दंड देने की कठोरता अपनानी पड़े, पर अनुशासित वातावरण को बनाए रखना अध्यापक का अपना काम है। यह तनिक भी कठिन नहीं है। यदि शिक्षक का निजी जीवन चरित्र ठीक हो और व्यवहार शालीनता से भरा-पूरा हो तो कोई कारण नहीं कि छात्र उनका अनुशासन न माने, प्रेरणा ग्रहण न करे और दिए गए तथ्यपूर्ण परामर्शों पर ध्यान न दे। माना कि समय की चाल उलटी है और उच्छंखलता के माहौल ने शिक्षार्थियों में भी उदंडता भर दी है। इतने पर भी निराशा जैसी कोई बात नहीं है। अनगढ़ पशुओं को सरकस वाले चतुराई के साथ वशवर्ती कर लेते हैं और उन्हें आश्चर्यजनक कार्य कर दिखाने योग्य बना लेते हैं। फिर कोई कारण नहीं कि गुरु गरिमा सही स्थिति में होने पर छात्रों को स्कूली पाठ्यक्रम में निष्णात और व्यक्तित्व की दृष्टि से समुन्नत, सुसंस्कृत न बनाया जा सके।

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