Book Title: Shikshan Prakriya Me Sarvangpurna Parivartan Ki Avashyakta
Author(s): Shreeram Sharma, Pranav Pandya
Publisher: Yug Nirman Yojna Vistar Trust

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Page 27
________________ २६ | शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता इसी तरह श्रेष्ठ व्यक्तित्वों के अकाल को दूर करने के लिए भी सुनिश्चित प्रयास करने ही होंगे। ___व्यक्ति और समाज के निर्माण में- शासकों, विचारों, साहित्यकारों, कलाकारों, सुसंपन्नों आदि का अपने ढंग का योगदान हो सकता है। वे जैसा कुछ भला-बुरा सोचते हैं, उसका परिणाम भी सामने आता है। उन सबको भी नवसृजन के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इतने पर भी प्रधान जिम्मेदारी अध्यापक की ही बनती है। हर किसी की आशा का केंद्र बिंदु वहीं आकर जमता है। वह केवल पाठ पढ़ाकर ही छुटकारा न पाए। गुरुजनों, अभिभावकों जैसी व्यवस्था बनाने, वातावरण पैदा करने में रुचि लें, तो इस गई-गुजरी स्थिति में भी बहुत कुछ सफलता मिल सकती है। अभी भी उसके हाथ में जो अवसर शक्ति, सुविधा और समय है, उसका उपयोग करें तो प्रयोजन सध सकता है। पाठ्यक्रम पूरा कराने के साथ ही साथ छात्रों का व्यक्तित्व उभारने, प्रतिभा निखारने और उन्हें आदर्शों के प्रति निष्ठावान बनाने में पर्याप्त सफलता मिल सकती है। शिक्षा के साथ दीक्षा का समन्वय इसी को कहते हैं। जिन अध्यापकों ने भी इस दिशा में संकल्पपूर्वक कदम उठाए हैं, वे पूरी तरह सफल होकर रहे हैं। उन्हें इस दिशा में सक्रिय होने से लाभ ही लाभ मिले। वेतनमान तो जो था वह रहा ही, उसमें तो कमी होनी ही नहीं थी। साथ में लोक सम्मान, यश और आत्म-संतोष अतिरिक्त मिला। सारे क्षेत्र में वे प्रचुर सम्मान और सहयोग पाते हुए सुखी जीवन जी सके। DO

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