Book Title: Shikshan Prakriya Me Sarvangpurna Parivartan Ki Avashyakta
Author(s): Shreeram Sharma, Pranav Pandya
Publisher: Yug Nirman Yojna Vistar Trust
View full book text
________________
शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता ५५ सदुपयोगों में लगाने की प्रखरता। हाथ के काम में समग्र मनोयोग से लगना। निरर्थक कल्पनाओं में मानसिक क्षमताओं को अस्त-व्यस्त न होने देना। शरीर, वस्त्र, स्थान, उपकरण, सभी में स्वच्छता और सुरुचि का सौम्य संयोग रखना। वस्तुओं को यथास्थान करीने से जमाने की आदत। दिनचर्या, कार्य पद्धति एवं योजनाओं में सुनियोजन का तारतम्य जीवन के किसी भी क्षेत्र में अस्त-व्यस्तता न रहने देना अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न मानना।
(४) ईमानदारी-किसी को धोखा न देना। वस्तु स्थिति से बहुत आगे बढ़कर शेखी न बघारना। छल प्रपंच का आश्रय न लेना। करनी और कथनी में अंतर न आने देना। अन्याय, अनौचित्य से बचकर रहना। बेईमानी को अपने विचारों और कार्यों में समाविष्ट न होने देना। अनीति न करना, न कराना और न उसका समर्थन करना।
(५) जिम्मेदारी-कर्त्तव्य परायणता, शारीरिक स्वास्थ्य का, मानसिक संतुलन का, आर्थिक सुव्यवस्था का तारतम्य बिठाये रखना। सौंपे गए कार्यों, आश्रित या अधीनस्थ व्यक्तियों के समुचित निर्वाह और विकास की क्षमता और भावना बनाए रखना। कोई ऐसा कार्य न करना, जिसका अनुसरण करने पर अन्यान्यों को पतन के गर्त में गिरना पड़े; दुःख उठाना पड़े। वैयक्तिक पारिवारिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में प्रामाणिकता उत्कृष्टता बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहना। देश, धर्म, समाज और संस्कृति के प्रति कर्तव्यों को अनुभव करना और उनका निर्वाह करना।
(६) आस्तिकता ईश्वर को सत्प्रवृत्तियों का समुच्चय, कल्याणकारी चेतना शक्ति का प्रवाह मानना। उस दिव्यधारा को व्यक्तित्व में अधिक से अधिक समाविष्ट करने के लिए अभ्यर्थना, उपासना करना। परब्रह्म को सर्वव्यापी और न्यायकारी मानते हुए कर्मफल की सुनिश्चितता पर विश्वास करना। उसे विश्व व्यवस्था का अनिवार्य अंग मानकर चलना। प्रतिफल मिलने में देरी होती हो, तो भी उसको अकाट्य मानकर, कुकर्मों से बचे रहने के संबंध में सतर्क रहना। व्यक्तित्व को, उसमें सन्निहित विभूतियों को परमपिता की