Book Title: Shikshan Prakriya Me Sarvangpurna Parivartan Ki Avashyakta
Author(s): Shreeram Sharma, Pranav Pandya
Publisher: Yug Nirman Yojna Vistar Trust
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शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता || ६३ | की सहकारी प्रवृत्ति भी पनपती है, घरों में इस प्रकार का प्रचलन चल पड़े तो परिवार के सभी सदस्य मिल-जुल कर सारे काम एक-दो घंटे में ही समेट सकते हैं। महिलाएँ जो गोरख धंधे में ही मस्त रहती हैं, वे कुछ अवकाश पा सकती हैं और उसे अपने बच्चों की पढ़ाई में लगाकर योग्यता बढ़ा सकती हैं। इस बचे हुए समय में स्त्रियाँ घरेलू उद्योगों के सहारे कुछ कमा भी सकती हैं।
व्यक्तिगत सद्गुणों की अभिवृद्धि का अभ्यास परमार्थ परायणता से होता है। पुण्य कमाना इसी को कहते हैं। लोक सेवा के लिए कुछ कदम उठाने की बात तभी बनती है, जब भीतर से सद्भावनाएँ उभरें। सस्ती नेतागीरी और झूठी वाहवाही लूटने के लिए प्रपंच, आडंबर खड़े करने वालों की बात दूसरी है। वे कहते बहुत हैं, दिखावा भी बहुत करते हैं, पर सेवा कृत्यों में समय लगाने एवं अनुदान अर्पित करने में तनिक भी उत्साह नहीं दिखाते। सद्गुण बढ़ चले या बढ़ने जा रहे हैं, इसकी एक ही परीक्षा है कि उदार सेवा साधना में संलग्न होने की उमंग उभरी या नहीं ? यदि उभरी होगी तो वे अवसर पाते ही उस प्रसंग में जुट पड़ने से पीछे न हटेंगे। इस प्रयोजन के लिए सेवा समिति जैसे छोटे-छोटे समुदायों का गठन किया जाना चाहिए।
सामूहिक सेवा कार्यों में गाँव की, गली-मुहल्लों की नालियों, कुओं के इर्द-गिर्द कीचड़ की, तालाब की सफाई करने का कार्य ऐसा है। जो सामान्य दीखते हुए भी असाधारण रूप से उपयोगी है। गंदगी से बीमारी फैलती है। कुरुचि और दुर्गंध से वातावरण दूषित होता है। कचरे को खाद के रूप में परिवर्तित करके, उसे मूल्यवान भी बनाया जा सकता है। सफाई करने वाले कर्मचारियों के अभाव की पूर्ति यह बाल-मंडलियाँ कर सकती हैं। रात्रि को पहरा देने का काम भी ऐसा है, जिससे सभी में जागरूकता, सावधानी बढ़ती है और चोरों-उचक्कों की दाल नहीं गलती।
मिल-जुलकर वृक्षारोपण किया जा सकता है। पौधशालाएँ लगाई जा सकती हैं। घर-घर आँगनबाड़ी लगाने का चस्का लगाया जा