Book Title: Shikshan Prakriya Me Sarvangpurna Parivartan Ki Avashyakta
Author(s): Shreeram Sharma, Pranav Pandya
Publisher: Yug Nirman Yojna Vistar Trust

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Page 33
________________ | ३२ शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता और नाम की संगति नोट कर ली जाए, इतने भर से नाम और रूप की संगति बैठ जाती है और नाम लेकर पुकारने में जो कठिनाई प्रायः आती है वह सहज ही दूर हो जाती है। ___वार्तालाप जिस भी विषय पर करना हो उसका सिलसिला चालू रखते हुए भी यह किया जाना चाहिए कि उसकी अच्छाइयों, सफलताओं, सराहनीय क्रियाओं को ध्यान में रखा जाए और उनकी चर्चा का पुट लगाते रहा जाए। इतने भर से विद्यार्थी अपने मार्गदर्शक के प्रति आत्मीयता जोड़ लेता है, श्रद्धा बढ़ाता है और परामर्श मानता है। इस आधार पर उसके सुधार वाली बात को क्रमशः आगे बढ़ाया जा सकता है। __ इस सबके लिए बाहर से साधन बढ़ाने की नहीं अंतरंग साधना बढ़ाने की आवश्यकता है। साधना संपन्न शिक्षक जब संकल्प लेकर आगे बढ़ता है तो आवश्यक साधन भी जुटने लगते हैं। साधनों का अभाव ऐसे मनस्वियों के संकल्प में न कभी बाधक बन सका है और न भविष्य में बाधक बन सकेगा। जिन भावनाशील अध्यापकों के मन मस्तिष्क में ऐसे संकल्प उभरें, वे कुछ कर गुजरने में झिझकें नहीं। सीमित मात्रा में ही करें, पर सुनिश्चितता के साथ करें, तो समय की महती आवश्यकता की पूर्ति का एक नया चक्र प्रारंभ हो सकता है। 00

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