Book Title: Shikshan Prakriya Me Sarvangpurna Parivartan Ki Avashyakta
Author(s): Shreeram Sharma, Pranav Pandya
Publisher: Yug Nirman Yojna Vistar Trust

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Page 49
________________ ४८ शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता करने से ऐसे ढेरों उदाहरण हस्तगत हो सकते हैं। किसी महापुरुष के समस्त जीवन का घटना क्रम सुनना आवश्यक नहीं। काम इतने भर से चल सकता है कि उनके वही अंश लिए जाएँ, जिनमें नीति शिक्षा का कोई घटनाक्रम या संवाद अत्यंत स्पष्ट रूप से निखरा हो। ऐसे उदाहरण देशी और विदेशी कहीं के भी हो सकते हैं। उनमें नर-नारी, बालक, वृद्ध, अपंग सभी आ सकते हैं। ऐसा एक संकलन युग निर्माण योजना मथुरा से 'प्रज्ञा-पुराण' नाम से पांच खंडों में प्रकाशित भी हुआ है। अभी इस प्रसंग में और भी विशेष संकलन बढ़ाने की आवश्यकता है। तर्क, तथ्य आदि के आधार पर विवेचनात्मक भाषण देना सुगम है, क्योंकि उसमें शब्दों को लच्छेदार बनाकर विवेचना पक्ष को विस्तृत तो बनाया जा सकता है, पर उसमें सरसता नहीं आ सकती। विशेषतया तथ्य को हृदयंगम करने का अवसर तो मिलता ही नहीं। कारण यह है कि लोगों की प्रधान प्रवृत्ति अनुकरण की है। अनुकरणीय-घटनाएँ ही होती हैं। वे प्रत्यक्ष न हों, पुरातन ऐतिहासिक भी हो सकती हैं। दुर्भाग्य से ऐसा कोई संकलन हुआ नहीं है, जिसे शिक्षण हेतु प्राध्यापकों के हाथ में थमाया जा सके। प्रथम बार इस दृष्टि से प्रज्ञा पुराण तथा महापुरुषों की जीवनियों का ही संकलन हुआ है। बन पड़ा तो ऐतिहासिक प्रमाणिक घटनाओं का सुनियोजन क्रमबद्ध संकलन हम लोग प्रकाशित करेंगे, जिनके उद्धरण देते हुए नीति शिक्षा पक्ष के अनेक पहलुओं को छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत किया जा सके, उनके अनुकरण पर जोर दिया जा सके। पुस्तकों के अतिरिक्त इस प्रयोजन के लिए चित्रों एवं संगीतों का भी प्रयोग हो सकता है। नाटक, प्रहसन, वाद-विवाद प्रतियोगिताएँ भी एक सीमा तक इस प्रयोजन की पूर्ति कर सकती हैं। यह साधन उपकरण किस प्रकार एकत्रित किए जाएँ ? उन्हें कैसे विनिर्मित किया जाए ? उनकी व्यवस्था बनाने एवं प्रदर्शन करने के लिए किस स्तर की योजना बनाई जाए यह सभी विचारणीय हैं। शिक्षा विभाग के पास इन कार्यों के लिए संभवतः कोई बड़ा बजट नहीं है, न प्रशिक्षित कार्यकर्ता हैं, जो लोक मंगल और लोक रंजन के समन्वय

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