Book Title: Shikshan Prakriya Me Sarvangpurna Parivartan Ki Avashyakta
Author(s): Shreeram Sharma, Pranav Pandya
Publisher: Yug Nirman Yojna Vistar Trust

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Page 45
________________ |४४|| शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता शिक्षार्थियों की मनोभूमि कुछ उपयोगी आदर्शवादी मान्यताएँ धीरे-धीरे अपनाती रह सकती हैं। वह पुट निरंतर लगते रहने से उत्कृष्टता की पक्षधर मनोभूमि परिपक्व होती रह सकती है। यह संकलन सामान्य स्तर के छात्रों को समयानुसार उदाहरण के रूप में व्यक्तित्ववान बनाये रह सकता है। ___ यह जोड़-तोड़ हर पाठ्य विषय के साथ बिठाया जा सकता है। यहाँ तक कि गणित जैसा रूखा विषय भी इस प्रयोजन के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। "दस चोरों में से छह पकड़े गए। दो अस्त-व्यस्तता के कारण बीमार पड़े एक की अप्रतिष्ठा फैली और वह असहयोग के कारण बेकार हो गया। बताओ उनमें से कितने सही स्थिति में बचे ?" बाल कथा के इस छोटे-से प्रश्न में भी नैतिकता के समर्थक संकेत भी मिल सकते हैं। इसी प्रकार भूगोल, गणित, इतिहास, भाषा, विज्ञान आदि किसी भी विषय के पढ़ाते समय उसमें से ऐसे निष्कर्ष ढूँढ़े और कहे जा सकते हैं, जो दुष्प्रवृत्तियों की हानियों और सत्प्रवृत्तियों की उपलब्धियों को प्रकट करते हों। किस विषय के साथ किस प्रकार मानवीय आदर्शों, उच्च जीवन मूल्यों का पृष्ठ लगाया जाए ? कैसे किसके साथ क्या संगति बिठाली जाए ? इस पर पर्याप्त मार्गदर्शन युक्त साहित्य लिखा जा सकता है। समय की पुकार पर अगले चरण में वैसा होगा भी, परंतु अभी तो भावनाशील शिक्षकों को परस्पर परामर्श करके ही संबंधित सूत्रों का निर्धारण कर लेना समयानुकूल है।

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