Book Title: Shikshan Prakriya Me Sarvangpurna Parivartan Ki Avashyakta
Author(s): Shreeram Sharma, Pranav Pandya
Publisher: Yug Nirman Yojna Vistar Trust

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Page 29
________________ काढलाइ |२८| शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता वे और इसी स्तर के अन्यान्य अध्यापक भी थे, वे सब विद्यालय के छात्रों के साथ इस प्रकार गुँथ गए कि कीट भंग की किंबदंती चरितार्थ हुई। पढ़ने वाले आजादी के दीवानों के ढाँचे में ढल गए। सत्याग्रह आंदोलन आरंभ हुआ। प्रेम महाविद्यालय के पुराने और वर्तमान के सभी छात्र उसमें कूद पड़े। प्रांत का आंदोलन अग्रणी रहा। उसमें इन छात्रों की भूमिका ही प्रमुख थी। अंग्रेज सरकार को पता चला तो सभी नए पुराने छात्र ढूँढ-ढूँढ़कर गिरफ्तार कर लिए गए। विद्यालय सील किया गया उसकी संपत्ति जब्त की गई। इसे कहते हैं पढ़ाई-ढलाई। ___ यही विचार अनेकों के मन में कौंधा। योगी अरविंद ने कलकत्ता में नेशनल कॉलेज बनाया, तो बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने काशी विद्यापीठ, सरदार पटेल के प्रयत्न से गुजरात विद्यापीठ बनी। स्वामी श्रद्धानंद ने गुरुकुल काँगड़ी की स्थापना की। इन सभी संस्थानों में अध्यापक इस स्तर के नियुक्त किए गए, जो पेट भरने के लिए नहीं, कुछ कर दिखाने की लगन लेकर योग्यता से कहीं कम वेतन लेकर टकसालों में खरे सोने के सिक्के ढालने में लगे रहें। प्राचीन काल में देश-विदेशों में बौद्धिक क्रांति करने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय और तक्षशिला ने महती भूमिका निवाही उन्होंने कुमार जीव जैसे प्रचंड प्रतिभा के धनी धर्म-प्रचारक ढाले, जिसकी यश गाथा सुनते-सुनते जी नहीं भरता। ___अत्यावश्यक नहीं कि इस स्तर के संस्थान बनाने चलाने में आरंभिक पूँजी जुटाने के लिए सरकार का मुँह ताकना पड़े या धनी मानियों के सामने अनिवार्य रूप में पल्ला पसारने पड़े। अध्यापको का स्तर उनके विद्यालयों के लिए न केवल पर्याप्त छात्र जुटा देता है वरन् आवश्यक साधन भी अपने चुंबकत्व से खींचकर बुला लेता है। राजस्थान के श्री हीरालाल शास्त्री ने एक पेड़ के नीचे बैठकर थोड़ी-सी कन्याओं को स्वयं पढ़ाना शुरू किया था। ख्याति फैली तो थोड़े ही दिनों में वहाँ विश्वविद्यालय स्तर का वनस्थली विद्यालय बनकर खड़ा हो गया। शेखावटी के स्वामी केशवानंद अल्पशिक्षित होते हुए भी उस इलाके में गाँव-गाँव प्राथमिक विद्यालयों से लेकर

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