Book Title: Shikshan Prakriya Me Sarvangpurna Parivartan Ki Avashyakta
Author(s): Shreeram Sharma, Pranav Pandya
Publisher: Yug Nirman Yojna Vistar Trust

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Page 15
________________ | १४|| शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता नीति शिक्षा कहने-सुनने में तो सरल है, पर वह अति कठिन है। इसके लिए सबसे पहले अध्यापक को अपना बाहरी और आंतरिक जीवन ऐसे साँचे में ढालना होता है, जिसका अनुगमन करते हुए संबंधित छात्र अनायास ही प्रामाणिक एवं शालीनता के ढाँचे में ढलने लगें। वाणी, सिद्धांतवाद का महत्त्व और स्वरूप समझाने में किसी तरह सफल हो जाती है, पर सबसे अधिक प्रभाव परामर्शदाता के परिष्कृत व्यक्तित्व का ही पड़ता है। आज की परिस्थितियों में कठिनाई समझी जाने वाली नीति शिक्षा को व्यावहारिक और ग्राह्य बनाने का गौरवमय उत्तरदायित्व शिक्षकों पर आता है। वाणी से दिए जाने वाले मार्ग दर्शन के साथ-साथ उन्हें चरित्र द्वारा दिए जाने वाले शिक्षण की विधा विकसित करनी होगी। यदि अपने गौरव का अनुभव किया जा सके तो ऐसा करना कठिन नहीं, रोचक और मनोरम हो जाता है, उसमें घाटा कहीं भी नहीं। छात्रों, अभिभावकों के श्रद्धापात्र बनते ही शिक्षकों को वह उच्चस्तरीय सम्मान और सहयोग प्राप्त होने लगता है जिसके लिए बड़े-बड़े नेता, अधिकारी तरसते हैं। 00

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