Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

Previous | Next

Page 15
________________ मरते हैं। इस प्रकार क्षीणकषायके अन्तिम समय तक असंख्यातगुणे असंख्यातगुणे जीव मरते हैं। इस प्रकार क्षीणकषायके अन्तिम समयमें जो मरनेवाले निगोद जीव होते हैं उनके विस्रसोपचयसहित कर्म और नोकर्मके समुदायको एद बादर निगोदवर्गणा कहते हैं। चूंकि यह अन्य बादर निगोदवर्गणाकी अपेक्षा सबसे जघन्य होती है, अतः क्षपितकशि विधिसे आये हुए जीवके क्षीणकषायके अन्तिम समयमें जघन्य बादर निगोदवर्गणा कही गई है। यहाँ बारहवें गुणस्थानमें उस गुणस्थानवाले जीवके शरीरके सब निगोद जीवोंके मरनेकी बात कही गई है । इसका अभिप्राय यह है कि सयोगी केवली और अयोगिकेवली जीवका शरीर एक मात्र अपने जीवको छोडकर अन्य त्रस और स्थावर निगोद जीवोंसे रहित हो जाता है । उनके शरीरकी सात धातु और उपधातु यहाँ तक कि रोम, नख, चमडी और रक्त भी एक सयोगिकेवली जीवके शरीरको छोडकर अन्य किसी जीवका आधार नहीं रहता। यहाँ बारहवें गुणस्थानमें यद्यपि क्रमसे निगोद राशिका अभाव बतलाया गया है, इसलिए यह प्रश्न हो सकता है की क्षीणकषाय जीवके शरीरसे निगोदराशिका अभाव होता है तो होओ, पर उसके शरीरसे त्रसराशिका भी अभाव हो जाता है यह कैसे माना जा सकता है ? उत्तर यह है कि नारकी देव, आहारकशरीरी और केवली इन चार प्रकारके त्रस जीवोंके शरीरोंको छोडकर अन्य जितने त्रस जीवोंके शरीर हैं वे सब बादरनिगोद प्रतिष्ठित होते हैं, ऐसा आगमवचन है । अब जब कि केवली जिनके शरीरमें एक भी निगोद जीव नहीं रहता तो वहाँ उनके आधारभूत अन्य क्रमिरूप त्रस जीवोंकी सम्भावना ही नहीं की जा सकती है। यही कारण है कि केवली जिनके शरीरको कृमिरूप त्रस जीवों और बादरनिगोद जीवोंसे रहित बतलाया है निगोद जीव क्षीणकषाय जीवके शरीरमें से क्यों मरने लगते हैं, इसका समाधान वीरसेन स्वामीने इस प्रकार किया है। उनका कहना है कि ध्यानके बलसे वहाँ उत्तरोत्तर बादर निगोद जीवोंकी उत्पत्तिका निरोध होता जाता है, इसलिए क्रमसे नये बादर निगोद जीव उत्पन्न नहीं होते हैं और जो पुराने बादरनिगोद जीव होते हैं उनकी आयु पूर्ण हो जाने के कारण वे मर जाते हैं । यद्यपि क्षीणकषायके शरीर में बादर निगोद जीव सर्वथा उत्पन्न ही नहीं होते ऐसी बात नहीं है । प्रारम्भमें तो वे उत्पन्न होते हैं और क्षीणकषायगुणस्थानके कालम बादरनिगोद जोवकी जघन्य आयु प्रमाण कालके शेष रहने तक वे उत्पन्न होते हैं। इसके बाद नहीं उत्पन्न होते । यहाँ यह प्रश्न होता है कि जिस प्रकार प्रारम्भ में वे उत्पन्न होते हैं उसी प्रकार क्षीणकषायके अन्तिम समय तक वे क्यों नहीं उत्पन्न होते ? समाधान यह है कि केवली जिनका शरीर प्रतिष्ठित प्रत्येकरूप है ऐसा षटखण्डागम शास्त्रका अभिप्राय है। अब यदि यह माना जाता है कि क्षीणकषाय जीवके शरीरमें अन्तिम समय तक बादर निगोद जीव उत्पन्न होते हैं तो केवली जिनके शरीरमें भी बादर निगोद जीवोंका सद्भाव मानना पडता है। चूंकि केवली जिनके शरीरमें बादर निगोद जीवोंका सद्भाव नहीं बतलाया है, इसलिए यह बात सुतरां सिद्ध हो जाती है कि क्षीणकषायके शरीरमें अन्तिम समय तक बादर निगोद जीव न उत्पन्न होकर जहाँ तक सम्भव है वहीं तक उत्पन्न होते है । _____ साधारणतः अन्य शास्त्रोंमें केवली जिनके शरीरको सात धातु और उपधातुसे रहित परमौदारिक रूप कहा गया है और यह भी बतलाया है कि केवलीके शरीरके नख और केश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 634