Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

Previous | Next

Page 13
________________ ( ४ ) यहां वर्गणानिक्षेपके छह भेद करके उनमें से कौन निक्षेप किस नयका विषय है यह बतलाकर इस प्रकरणको समाप्त किया गया है । वर्गणाके सोलह अनुयोगद्वारों में से केवल दो का ही विचार कर वर्गणाद्रव्यसमुदाहारका अवतार क्यों किया गया है यह प्रश्न उठाकर वीरसेनस्वामीने उसका यह समाधान किया है कि वगंणा प्ररूपणा अधिकार केवल वर्गणाओंकी एक श्रेणिका कथन करता है किन्तु वर्गणाद्रव्यसमुदाहार वर्गणाओंकी एकश्रेणि और नाना - श्रेणिका सांगोपांग विचार करता है अतः यहां वर्गणाके शेष चौदह अधिकारोंका कथन न करके वर्गणाद्रव्यसमुदाहारका कथन प्रारम्भ किया है। वर्गणाद्रव्यसमदाहार- इस अनुयोगद्वारके भी चौदह अवान्तर अधिकार हैं जिनके नाम ये हैं- वर्गणाप्ररूपणा, वर्गणानिरूपणा, वर्गणाध्रुवाध्रुवानुगम, वर्गणासान्तरनिरन्तरानुगम वर्गणाओजयुग्मानुगम, वर्गणक्षेत्रानुगम, वर्गणास्पर्शनानुगम, वर्गणाकालानुगम, वर्गणाअन्तरानुगम, वर्गणाभावानुगम, वर्गणा उपनयनानुगम, वर्गणापरिमाणानुगम, वर्गणाभागाभागानुगम और वर्गणा अल्पबहुत्व। वर्यणाप्ररूपणा- इसके द्वारा तेईस प्रकारकी वर्गणाओंका विचार किया है। वे तेईस प्रकारकी वर्गणायें ये है-एकप्रदेशिक परमाणुपुद्गल द्रव्य वर्गणा, संख्यातप्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्य वर्गणा, असंख्यात प्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा, अनन्तप्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा, आहारवर्गणा, अग्रहणवर्गणा, तैजसशरीरद्रव्यवर्गणा, अग्रहणवर्गणा, भाषाद्रव्यवर्गणा, अग्रहणवर्गणा, मनोद्रव्यवर्गणा, अग्रहणवर्गणा, कार्मणद्रव्यवर्गणा, ध्रुवस्कन्धवर्गणा, सान्तरनिरन्तरवर्गणा, ध्रुवशून्यवर्गणा, प्रत्येकशरीरद्रव्यवर्गणा, ध्रुवशून्यद्रव्यवर्गणा, बादरनिगोदद्रव्यवर्गणा, ध्रुवशून्यद्रव्यवर्गणा, सूक्ष्म निगोदवर्गणा, ध्रुवशून्यवर्गणा और महास्कन्धवगंणा । ___एक परमाणुकी एकप्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा संज्ञा है। द्विप्रदेशिक से लेकर उत्कृष्ट संख्यातप्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा तककी सब वर्गणाओंकी संख्यातप्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा संज्ञा है । जघन्य असंख्यातप्रदेशिकसे लेकर उत्कृष्ट असख्यातप्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणाओंकी असंख्यातप्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा संज्ञा है। आहारवर्गणासे पूर्वतककी अनन्तप्रदेशी और अनन्तानन्तप्रदेशी जितनी वर्गणाये हैं उनकी यहां अनन्तप्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा संज्ञा दी है। इन्ही वर्गणाओंमें परीत और अपरोतप्रदेशी परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणायें भी सम्मिलित हैं । औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके योग्य वर्गणाओंकी आहारवर्गणा संज्ञा है । इसी प्रकार आगे भी अपने अपने कार्य के अनुसार उन उन वर्गणाओंकी संज्ञा जाननी चाहिए । यहां जो चार ध्रुवशून्यवर्गणायें कहीं हैं वे वस्तुतः शून्यरूप हैं । केवल पिछली वर्गण। और अगली वर्गणाके मध्यके शून्यरूप अन्तरालका परिज्ञान कराने के लिए यह संज्ञा दी गई है। ___ यहाँ अन्तमें आई हुई प्रत्येकशरीरवर्गणा, बादरनिगोदवर्गणा, सूक्ष्म निगोदवर्गणा और महास्कन्धवर्गणा ये चार ऐसी वर्गणायें हैं जिनके स्वरूपके विषयमें कुछ अलगसे प्रकाश डालना आवश्यक हैं, अतः यहाँ इस विषयमें लिखा जाता है। एक जीवके एक शरीरमे जो कर्म और नोकर्मस्कन्ध संचित होता है उसकी प्रत्येकशरीरद्रव्यवर्गणा संज्ञा है यह प्रत्येक शरीर पथिवीकायिक, जलकायिक, अप्ति कायिक, वायु कायिक, देव, नारकी, आहारकशरीरी प्रमत्तसंयत और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 634