Book Title: Shatkhandagama Pustak 14 Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh SolapurPage 11
________________ विषय-परिचय बन्धनके चार भेद हैं- बन्ध, बन्धक, बन्धनीय और बन्धविधान । यहाँ इस अनुयोगद्वारमें, बन्धक और बन्धविधानको सूचनामात्र की है, क्योंकि बन्धकका विशेष विचार खुद्दाबन्ध में और बन्धविधानका विशेष विचार महाबन्ध में किया है । शेष दो प्रकरण अर्थात् बन्ध और बन्धनीयका विचार इस अनुयोगद्वारमें किया है। इस अनुयोगद्वार में बन्धनीयके प्रसंगसे वर्गणाओंका विशेषरूपसे ऊहापोह किया गया है, इसलिए ही स्पर्शसे लेकर यहां तकके पूरे प्रकरणकी वर्गणाखंड संज्ञा पडी है । अब संक्षेपसे इस भाग में वर्णित विषयका ऊहापोह करते हैं । १ बन्ध बन्ध के चार भेद हैं- नामबन्ध, स्थापनाबन्ध, द्रव्यबन्ध और भावबन्ध | इनमें से नंगम, संग्रह और व्यवहारनय सब बन्धोंको स्वीकार करते हैं। ऋजुसूत्रनय स्थापनाबन्धको स्वीकार नहीं करता है, शेष को स्वीकार करता है । शब्दनय केवल नामबन्ध और भावबन्धको स्वीकार करता है । कारण स्पष्ट है । एक जीव एक अजीव नाना जीव और नाना अजीव आदि जिस किसीका बन्ध ऐसा नाम रखना नामबन्ध है । तदाकार और अतदाकार पदार्थों में यह बन्ध है ऐसी स्थापना करना स्थापनाबन्ध है । द्रव्यबन्धके दो भेद हैं- आगमद्रव्यबन्ध और नोआगमद्रव्यबन्ध | भावबन्ध के भी ये ही दो भेद हैं । बन्धविषयक स्थित आदि नौ प्रकारके आगम में वाचना आदि रूप जो उपयुक्त भाव होता है उसे आगम भावबन्ध कहते हैं । नोआगमभावबन्ध दो प्रकारका हैजीवभावबन्ध और अजीवभावबन्ध । जीवभावबन्धके तीन भेद हैं- विपाकज जीवभावबन्ध, अविपाकज जीवभावबन्ध और तदुभयरूप जीवभावबन्ध । जीवविपाकी अपने अपने कर्मके उदयसे जो देवभाव, मनुष्य भाव, तिर्यञ्चभाव, नरकभाव, स्त्रीवेद, पुरुषवेद आदि रूप औदयिक भाव होते हैं वे सब विपाकज जीवभावबन्ध कहलाते हैं। अविपाकज जीवभावबन्धके दो भेद हैंऔपशमिक और क्षायिक । उपशान्त क्रोध, उपशान्त मान आदि औपशमिक अविपाकज जीवभावबन्ध कहलाते हैं और क्षीणमोह, क्षीणमान आदि क्षायिक अविपाकज जीवभावबन्ध कहलाते हैं । यद्यपि अन्यत्र जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व ये तीन पारिणामिक मानकर इन्हें अविपाकज जीवभावबन्ध कहा है पर ये तीनों भाव भी कर्मके निमित्तसे होते हैं, इसलिए यहाँ इन्हें अविपाकज जीवभावबन्ध में नहीं गिना है । तथा एकेन्द्रियलब्धि आदि क्षायोपशमिकभाव तदुभयरूप जीवभावबन्ध कहे जाते हैं । अजीवभावबंध भी विपाकज, अविपाकज और तदुभयके भेदसे तीन प्रकारका है। पुद्गलविपाकी कर्मोंके उदयसे शरीरमें जो वर्णादि उत्पन्न होते हैं वे विपाकज अजीवभावबंध कहलाते हैं । तथा पुद्गल के विविध स्कन्धों में जो स्वाभाविक वर्णाद होते हैं वे अविपाकज अजीवभावबंध कहलाते हैं और दोनों मिले हुए वर्णादिक तदुभयरूप अजीवभावबंत्र कहलाते हैं यह हम पहले ही संकेत कर आये हैं कि द्रव्यबंध दो प्रकारका है-- आगमद्रव्यबंध और नोआगमद्रव्यबंध । बंत्रविषयक नौ प्रकारके आगम में वाचता आदिरूप जो अनुपयुक्त भाव होता है उसे आगमद्रव्यबंध कहते हैं। नोआगम द्रव्यबंध दो प्रकारका हैप्रयोगबंध और विस्रसाबंध । विस्रसाबंध के दो भेद हैं- सादिविसाबंध और अनादिविस्रसाबंध | अलग अलग धर्मास्तिकायका अपने देशों और प्रदेशोंके साथ अधर्मास्तिकायका अपने -- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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